Mitra–Varuna

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मित्र और वरुण: ऋग्वेद के दो महान देवता

प्राचीन भारतीय ग्रंथ ऋग्वेद में मित्र और वरुण (संस्कृत: mitrā́váruṇā) दो देवता हैं जिनका बार-बार उल्लेख किया गया है। दोनों को आदित्य माना जाता है, यानी सूर्य से जुड़े देवता; और वे ऋता के धार्मिक नियमों के रक्षक हैं। इनका संबंध इतना घनिष्ठ है कि वे अक्सर मित्र-वरुण के द्वंद्व समास में जुड़े हुए हैं।

मित्र "मित्रता" और "संधि" से जुड़ा है, और वरुण "पानी" और "आकाश" से जुड़ा है। वे दोनों सत्य, न्याय और व्यवस्था के देवता हैं, और वे मनुष्यों को उनके कर्मों के लिए जवाबदेह ठहराते हैं।

ऋग्वेद में, मित्र और वरुण को अक्सर एक साथ प्रार्थना की जाती है, और वे साथ में काम करते हुए दिखाई देते हैं। वे आकाश और पृथ्वी पर शासन करते हैं, और वे बारिश, पशुधन और समृद्धि प्रदान करते हैं।

मित्र-वरुण नाम एक 1940 के निबंध का भी शीर्षक है जो प्रोटो-इंडो-यूरोपीय पौराणिक कथाओं पर जॉर्जेस डुमेज़िल ने लिखा था। इस निबंध में डुमेज़िल ने मित्र और वरुण के संभावित प्रोटो-इंडो-यूरोपीय मूल और उनके संबंध के विश्लेषण का प्रयास किया।

मित्र और वरुण के महत्व को समझने से ऋग्वेद और प्राचीन भारतीय धर्म के कई पक्षों को समझने में मदद मिलती है। वे सत्य, न्याय और व्यवस्था के महत्व के प्रतीक हैं, और वे मनुष्यों को अपने कर्मों के लिए जवाबदेह ठहराने की महत्वपूर्ण सीख देते हैं।





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