





चैतन्य महाप्रभु
Chaitanya Mahaprabhu
(15th-century Indian Vaishnavite Hindu saint)
Summary
चैतन्य महाप्रभु: एक विस्तृत विवरण
चैतन्य महाप्रभु, जिनका जन्म विश्वंभर मिश्र के रूप में हुआ था, 15वीं शताब्दी के एक महान हिंदू संत थे। उनका जन्म बंगाल में हुआ था। उन्हें गौड़ीय वैष्णव धर्म का संस्थापक माना जाता है, जो उन्हें कृष्ण का अवतार मानते हैं।
भक्ति आंदोलन को नई दिशा:
चैतन्य महाप्रभु ने भजन-कीर्तन और नृत्य के साथ कृष्ण की आराधना के एक अनूठे तरीके को जन्म दिया, जिसका बंगाल में वैष्णव धर्म पर गहरा प्रभाव पड़ा।
अचिन्त्य भेद अभेद तत्व:
वे वेदांत दर्शन के अचिन्त्य भेद अभेद तत्व के प्रमुख प्रस्तावक भी थे। इस सिद्धांत के अनुसार, जीव, भगवान से अभिन्न होने के साथ-साथ उनसे भिन्न भी हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे सूर्य की किरण सूर्य से अलग और अभिन्न दोनों होती है।
गौड़ीय वैष्णव धर्म:
महाप्रभु ने गौड़ीय वैष्णव धर्म (जिसे ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय संप्रदाय भी कहा जाता है) की स्थापना की। उन्होंने भक्ति योग का विस्तार से वर्णन किया और हरे कृष्ण महामंत्र के जप को लोकप्रिय बनाया।
शिक्षाष्टकम्:
उन्होंने आठ भक्ति प्रार्थनाओं 'शिक्षाष्टकम्' की रचना की, जो भक्ति मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करती हैं।
गौरांग और निमाई:
चैतन्य को उनके सुनहरे रंग के कारण कभी-कभी गौरांग या गौरा कहा जाता है। उनके जन्मदिन को गौरा-पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। उन्हें निमाई भी कहा जाता है क्योंकि उनका जन्म एक नीम के पेड़ के नीचे हुआ था।
निष्कर्ष:
चैतन्य महाप्रभु एक महान संत थे जिन्होंने भक्ति आंदोलन को एक नया आयाम दिया। उनके द्वारा स्थापित गौड़ीय वैष्णव धर्म आज भी दुनिया भर में लाखों लोगों द्वारा अनुसरण किया जाता है।