





सरमा
Sarama
(Female dog of the gods in Hinduism)
Summary
सरमा: देवताओं की वफ़ादार साथी
हिन्दू पौराणिक कथाओं में, सरमा (संस्कृत: सरमा) एक पावन कुत्ती हैं जिन्हें देवताओं की मादा कुत्ता या देव-शुनी (देव-श्रुणी) के रूप में जाना जाता है। उनका पहला उल्लेख हिन्दू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथों में से एक, ऋग्वेद में मिलता है, जिसमें वह देवताओं के राजा इंद्र को असुर पणियों द्वारा चुराई गई दिव्य गायों को पुनर्प्राप्त करने में मदद करती हैं। इस कथा का उल्लेख कई बाद के ग्रंथों में भी मिलता है, और सरमा को अक्सर इंद्र से जोड़ा जाता है। महाकाव्य महाभारत और कुछ पुराणों में भी सरमा का संक्षिप्त उल्लेख है।
शुरुआती ऋग्वैदिक रचनाएँ सरमा को कुत्ते के रूप में चित्रित नहीं करती हैं, लेकिन बाद की वैदिक पौराणिक कथाओं और व्याख्याओं में उन्हें आमतौर पर कुत्ते के रूप में ही दर्शाया गया है। उन्हें सभी कुत्तों की माँ के रूप में वर्णित किया गया है, विशेष रूप से यमराज के दो चार-नेत्रों वाले चितकबरे कुत्तों की माँ के रूप में। कुत्तों को 'सारमेय' ('सरमा की संतान') का मात्रनाम दिया गया है। एक धर्मग्रंथ सरमा को सभी जंगली जानवरों की माँ के रूप में भी वर्णित करता है।
थोड़ा और विस्तार से:
- सरमा और इंद्र: सरमा, इंद्र की वफ़ादार साथी थीं और उनकी गंध की अद्भुत शक्ति के लिए जानी जाती थीं। जब पणियों ने इंद्र की गायें चुरा लीं, तो इंद्र ने सरमा को उन्हें खोजने का काम सौंपा। अपनी गंध की शक्ति से, सरमा ने गायों को पाया और पणियों को चुनौती दी।
- सरमा और यम: सरमा को यमराज के दो प्रसिद्ध श्वानों, श्याम और सबल की माँ भी माना जाता है। ये श्वान स्वर्ग के द्वार की रक्षा करते हैं और मृतकों की आत्माओं को यमलोक ले जाते हैं।
- सरमा का महत्व: सरमा, वफ़ादारी, साहस और बुद्धिमत्ता का प्रतीक हैं। उन्हें शक्ति और सुरक्षा का भी प्रतीक माना जाता है।
सरमा का चरित्र हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और हमें पशुओं के प्रति प्रेम और सम्मान का संदेश देता है।