





कालरात्रि
Kalaratri
(Seventh form of goddess Durga)
Summary
कालरात्रि: देवी दुर्गा का सातवां रूप
कालरात्रि, नवदुर्गा के नौ रूपों में सातवां रूप है। देवी महादेवी का यह रूप अत्यंत उग्र और शक्तिशाली माना जाता है। इसका पहला उल्लेख देवी महात्म्य में मिलता है।
कई बार काली और कालरात्रि नामों का प्रयोग एक दूसरे के लिए किया जाता है, लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि ये दोनों अलग-अलग देवियाँ हैं। काली का उल्लेख हिंदू धर्म में एक अलग देवी के रूप में पहली बार लगभग 300 ईसा पूर्व महाभारत में मिलता है, जो माना जाता है कि 5 वीं और दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच लिखा गया था (संभवतः इससे पहले मौखिक परंपरा से)।
नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान कालरात्रि की पूजा की जाती है। नवरात्रि के सातवें दिन विशेष रूप से उन्हें समर्पित है। उन्हें देवी दुर्गा का सबसे उग्र रूप माना जाता है, जिसका रूप ही भय उत्पन्न करता है।
कालरात्रि का स्वरुप:
कालरात्रि को काले रंग की, तीन नेत्रों वाली, बिखरे हुए बालों और गरदन में बिजली की माला धारण करने वाली देवी के रूप में वर्णित किया गया है। उनके वाहन के रूप में एक गर्दभ (गधा) का उल्लेख मिलता है।
कालरात्रि की शक्ति:
यह माना जाता है कि कालरात्रि सभी राक्षसों, भूतों, बुरी आत्माओं और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश करती हैं। कहा जाता है कि उनके आगमन की खबर पाते ही ये सभी भाग जाते हैं।
सौधिकागम नामक प्राचीन तांत्रिक ग्रंथ में, जिसका उल्लेख शिल्प प्रकाश में मिलता है, कालरात्रि को प्रत्येक दिन के रात्रि भाग की अधिष्ठात्री देवी बताया गया है।
कालरात्रि का संबंध सहस्रार चक्र से भी है। ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा करने से भक्तों को सिद्धियाँ (अलौकिक शक्तियाँ) और निधियाँ (धन-संपत्ति) प्राप्त होती हैं। विशेष रूप से, ज्ञान, शक्ति और धन की प्राप्ति होती है।
शुभंकरी:
कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ संस्कृत में होता है "शुभ करने वाली"। यह इस विश्वास के कारण है कि वह हमेशा अपने भक्तों को सकारात्मक परिणाम प्रदान करती हैं। इसलिए, यह माना जाता है कि वह अपने भक्तों को निर्भय बनाती हैं।
अन्य नाम:
इस देवी के कुछ अन्य कम प्रचलित नाम रौद्री और धूमोर्णा हैं।