





उषा
Ushas
(Goddess of dawn in Hinduism)
Summary
उषा: वैदिक प्रभात की देवी
उषा (संस्कृत: उषस्) हिंदू धर्म में प्रातःकाल या उषाकाल की वैदिक देवी हैं। वे ऋग्वेद के कई सूत्रों में बार-बार प्रकट होती हैं, जहाँ उन्हें "लगातार प्रभात के साथ जोड़ा जाता है, जो दुनिया में प्रकाश के दैनिक आगमन के साथ खुद को प्रकट करती है, दमनकारी अंधेरे को दूर भगाती है, दुष्ट राक्षसों का पीछा करती है, सभी जीवन को जगाती है, सभी चीजों को गतिमान करती है, सभी को अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए भेजती है"।
जीवनदायिनी और प्रेरक: उषा सभी जीवित प्राणियों के जीवन का स्रोत हैं, क्रिया और श्वास की प्रेरक हैं, अराजकता और भ्रम की दुश्मन हैं, और ब्रह्मांडीय और नैतिक व्यवस्था (ऋत) की शुभ सूचक हैं।
ऋग्वेद में महत्व: हालांकि उषा ऋग्वेद में सबसे ऊंची देवी हैं, लेकिन उन्हें अग्नि, सोम और इंद्र जैसे तीन प्रमुख पुरुष वैदिक देवताओं जितना महत्व या केंद्रीयता नहीं मिलता है। फिर भी, उन्हें अन्य प्रमुख पुरुष वैदिक देवताओं के समान दर्जा प्राप्त है।
सुंदर चित्रण: उन्हें एक सुंदर ढंग से सजी हुई युवती के रूप में चित्रित किया गया है जो एक सुनहरे रथ या सौ रथों पर सवार होकर आकाश में अपना रास्ता बनाती है, जो सुनहरे लाल घोड़ों या गायों द्वारा खींचे जाते हैं। उनका आगमन वैदिक सूर्य देवता सूर्य के लिए मार्ग प्रशस्त करता है, जिन्हें या तो उनके पति या उनके पुत्र के रूप में संदर्भित किया जाता है। वेदों में कुछ सबसे सुंदर भजन उन्हें समर्पित हैं। उनकी बहन "निशा" यानि रात्रि हैं, जो रात की देवी हैं।
विस्तार से:
- उषा का आगमन एक नये दिन और नई शुरुआत का प्रतीक है।
- वे अंधकार को दूर भगाकर जीवन में प्रकाश, ज्ञान और आशा का संचार करती हैं।
- उनका रथ सूर्य के रथ का अग्रदूत होता है, जो दिन के आगमन की सूचना देता है।
- वेदों में उनकी स्तुति में उनकी सुंदरता, कृपा और शक्ति का वर्णन मिलता है।
उषा, वैदिक साहित्य में एक महत्वपूर्ण देवी हैं, जो प्रकृति के चक्र, जीवन की नवीनीकरण और प्रकाश के महत्व का प्रतीक हैं।