Bhaktāmara_Stotra

भक्तामर स्तोत्र

Bhaktāmara Stotra

(Jain Sanskrit prayer)

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भक्तामर स्तोत्र

भक्तामर स्तोत्र, जिसका अर्थ है "अमर भक्त का स्तवन", जैन धर्म का एक प्रमुख स्तोत्र है जो संस्कृत भाषा में रचा गया है। इसके रचयिता सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध जैन आचार्य, मानतुंग हैं। यह स्तोत्र जैन धर्म के पहले तीर्थंकर, भगवान ऋषभदेव की स्तुति में गाया जाता है।

इस स्तोत्र को लेकर दिगंबर और श्वेतांबर परंपराओं में मतभेद है। दिगंबर मान्यता के अनुसार इसमें 48 छंद हैं, जबकि श्वेतांबर परंपरा 44 छंदों को ही प्रामाणिक मानती है।

भक्तामर स्तोत्र की विशेषताएँ:

  • ऋषभदेव की महिमा का वर्णन: इस स्तोत्र में भगवान ऋषभदेव के दिव्य गुणों, उनके तप, त्याग, ज्ञान और करुणा का सुंदर वर्णन किया गया है।
  • सरल भाषा और भावपूर्ण शैली: मानतुंग ने सरल संस्कृत भाषा और हृदयस्पर्शी शैली में यह स्तोत्र रचा है जो इसे सभी के लिए सुगम बनाता है।
  • आध्यात्मिक उत्थान: इस स्तोत्र का पाठ करने से मन में भक्ति भाव जागृत होता है, सांसारिक मोह-माया से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है और आत्मा को शांति मिलती है।
  • जैन दर्शन का सार: भले ही यह स्तोत्र भगवान ऋषभदेव की स्तुति करता है, परन्तु इसमें जैन दर्शन के मूल सिद्धांतों जैसे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का भी समावेश है।

भक्तामर स्तोत्र का महत्व:

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म के सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण स्तोत्रों में से एक है। यह नित्य पूजा-पाठ का अभिन्न अंग है और इसे विशेष अवसरों पर भी गाया जाता है। इसके पाठ से भक्तों को आध्यात्मिक प्रेरणा और जीवन जीने की सही दिशा मिलती है।


The Bhaktāmara Stotra is a Jain religious hymn (stotra) written in Sanskrit. It was authored by Manatunga. The Digambaras believe it has 48 verses while Śvetāmbaras believe it consists of 44 verses.



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