
प्रज्ञा (बौद्ध धर्म)
Prajñā (Buddhism)
(Buddhist term often translated as "wisdom" or "intelligence")
Summary
प्रज्ञा: बौद्ध धर्म में ज्ञान और समझ
प्रज्ञा, जिसे पाली भाषा में पञ्ञा कहते हैं (𑀧𑀜𑁆𑀜𑀸), एक महत्वपूर्ण बौद्ध अवधारणा है जिसका अनुवाद अक्सर "ज्ञान," "बुद्धि," या "समझ" के रूप में किया जाता है। बौद्ध ग्रंथों में इसे चीजों की वास्तविक प्रकृति की समझ के रूप में वर्णित किया गया है।
प्रज्ञा का अर्थ
प्रज्ञा सिर्फ़ सतही ज्ञान या जानकारी नहीं है, बल्कि यह गहरी समझ है जो हमें चीजों को उनके वास्तविक रूप में देखने में मदद करती है। यह एक प्रकार की अंतर्दृष्टि है जो हमें दुःख के चक्र से मुक्ति दिलाती है।
प्रज्ञा और ध्यान
बौद्ध ध्यान के संदर्भ में, प्रज्ञा सभी चीजों के तीन लक्षणों को समझने की क्षमता है:
- अनित्य: सभी चीजें परिवर्तनशील हैं, कुछ भी स्थायी नहीं है।
- दुःख: परिवर्तनशील होने के कारण, सभी चीजें दुःख का कारण बनती हैं।
- अनत्ता: कोई भी चीज आत्मा या स्वयं नहीं है, सब कुछ अनित्य और взаимозависи है।
जब हम ध्यान के माध्यम से इन तीन लक्षणों को गहराई से समझते हैं, तो हम मोह और आसक्ति से मुक्त होते हैं और दुःख से मुक्ति पाते हैं।
महायान बौद्ध धर्म में प्रज्ञा
महायान बौद्ध ग्रंथों में, प्रज्ञा को शून्यता की समझ के रूप में वर्णित किया गया है। शून्यता का अर्थ है कि सभी चीजें स्वभाव से शून्य हैं, उनका कोई स्थायी अस्तित्व नहीं है।
प्रज्ञा का महत्व
बौद्ध धर्म में प्रज्ञा को मुक्ति के लिए आवश्यक माना जाता है।
- यह बौद्ध धर्म के त्रिशिक्षा (तीन गुना प्रशिक्षण) का एक हिस्सा है, जिसमें शील (नैतिक आचरण), समाधि (ध्यान), और प्रज्ञा (ज्ञान) शामिल हैं।
- यह थेरवाद बौद्ध धर्म के दस पारमिता (पूर्णता) में से एक है।
- यह महायान बौद्ध धर्म के छह पारमिता में से एक है।
निष्कर्ष
प्रज्ञा बौद्ध धर्म का एक केंद्रीय सिद्धांत है जो हमें चीजों की वास्तविक प्रकृति को समझने और दुःख से मुक्ति पाने में मदद करता है।