Taran_Panth

तारण पंथ

Taran Panth

(Sect of Digambara Jainism)

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तारण पंथ : एक विस्तृत विवरण (हिंदी)

तारण पंथ, जिसे तारण स्वामी पंथ, तारण समाज या तारणापंथी भी कहा जाता है, दिगंबर जैन धर्म का एक सम्प्रदाय है। इसकी स्थापना 1505 ईस्वी के आसपास तारण स्वामी जी ने बुंदेलखंड, मध्य भारत में की थी।

तारण स्वामी और पंथ की स्थापना:

  • 16वीं शताब्दी में, जैन धर्म के दिगंबर संप्रदाय में कुछ मान्यताओं को लेकर मतभेद उत्पन्न हुए।
  • तारण स्वामी जी ने इन मतभेदों के कारण दिगंबर जैन धर्म में कुछ सुधारों का प्रस्ताव रखा और अपने अनुयायियों के साथ एक नया पंथ स्थापित किया, जिसे तारण पंथ कहा गया।
  • तारण स्वामी जी ने जैन धर्म के मूल सिद्धांतों, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर बल दिया।

मुख्य विशेषताएं:

  • मूर्ति पूजा का निषेध: तारण पंथी मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते हैं और केवल जिनेंद्र देव की आराधना करते हैं।
  • साधुओं का श्वेत वस्त्र धारण: दिगंबर परंपरा के विपरीत, तारण पंथ के साधु श्वेत वस्त्र धारण करते हैं।
  • सामाजिक समरसता: तारण पंथ जातिवाद और ऊँच-नीच के भेदभाव को नहीं मानता है।
  • शिक्षा पर जोर: तारण पंथ शिक्षा को बहुत महत्व देता है और समाज में शिक्षा के प्रसार के लिए सक्रिय रूप से कार्य करता है।

वर्तमान स्वरूप:

आज, तारण पंथ के अनुयायी मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में पाए जाते हैं।

महत्त्वपूर्ण: यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि तारण पंथ एक स्वतंत्र सम्प्रदाय है, न कि जैन धर्म से अलग।

यह विवरण तारण पंथ के बारे में एक सामान्य जानकारी प्रदान करता है। अधिक जानकारी के लिए, आप जैन धर्म के विद्वानों और ग्रंथों का अध्ययन कर सकते हैं।


The Taran Panth, also known as Taran Svami Panth, Taran Samaj or Taranapanthi, is a sect of Digambara Jainism founded by Taran Svami in Bundelkhand in central India in c. 1505 CE.



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