Vishishtadvaita

विशिष्टाद्वैत

Vishishtadvaita

(One of the most popular schools of the Vedanta school of Hindu philosophy)

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विशिष्टाद्वैत: एक विस्तृत व्याख्या

विशिष्टाद्वैत (IAST: Viśiṣṭādvaita) एक हिन्दू दर्शन शाखा है जो वेदांत परंपरा से जुड़ी है। वेदांत, वेदों की गहन व्याख्या है जो प्रस्थानत्रयी पर आधारित है। विशिष्टाद्वैत का अर्थ है "भेदों के साथ अद्वैत", यह एक अद्वैतवादी दर्शन है जो ब्रह्म को सर्वोच्च वास्तविकता मानता है, साथ ही इसकी विविधता को भी स्वीकार करता है।

सरल शब्दों में:

विशिष्टाद्वैत कहता है कि ईश्वर एक है, लेकिन उसके भीतर अनेक रूप और गुण विद्यमान हैं। जैसे सूरज एक है, लेकिन उसकी किरणें अनेक हैं।

विस्तार से:

  • ब्रह्म: यह दर्शन ब्रह्म को ही एकमात्र सत्य मानता है। ब्रह्म ही सृष्टि का कारण है, और उसी में यह सृष्टि विलीन हो जाती है।
  • विविधता: विशिष्टाद्वैत यह मानता है कि यह सृष्टि और इसमें विद्यमान विविधता वास्तविक है, न कि माया।
  • जीव और ब्रह्म: यह दर्शन जीव (आत्मा) और ब्रह्म के बीच एक अभिन्न संबंध स्थापित करता है। जीव, ब्रह्म का अंश है, और उसी पर निर्भर है। जैसे शरीर के अंग शरीर से अलग नहीं रह सकते, वैसे ही जीव भी ब्रह्म से अलग नहीं रह सकता।

प्रमुख प्रणेता:

  • रामानुज: 11वीं-12वीं शताब्दी के दार्शनिक रामानुज विशिष्टाद्वैत दर्शन के प्रमुख प्रणेता थे। उनका मानना ​​था कि उपनिषद, भगवद् गीता और ब्रह्म सूत्र - प्रस्थानत्रयी - की व्याख्या इस प्रकार की जानी चाहिए जो एकता में विविधता को दर्शाती हो।
  • वेदांत देसिक: एक अन्य प्रमुख विद्वान वेदांत देसिक ने विशिष्टाद्वैत दर्शन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने "अशेष चित्-अचित् प्रकारं ब्रह्मैकमेव तत्त्वं" कथन के द्वारा इसकी व्याख्या की, जिसका अर्थ है: चेतन और अचेतन रूपों (या गुणों) से युक्त ब्रह्म ही एकमात्र वास्तविकता है।

संक्षेप में:

विशिष्टाद्वैत दर्शन हमें यह शिक्षा देता है कि हम ब्रह्म से अलग नहीं हैं। हमें मोक्ष प्राप्त करने के लिए ब्रह्म की उपासना और भक्ति करनी चाहिए।


Vishishtadvaita, is a school of Hindu philosophy belonging to the Vedanta tradition. Vedanta refers to the profound interpretation of the Vedas based on Prasthanatrayi. Vishishta Advaita, meaning "non-duality with distinctions", is a non-dualistic philosophy that recognizes Brahman as the supreme reality while also acknowledging its multiplicity. This philosophy can be characterized as a form of qualified monism, attributive monism, or qualified non-dualism. It upholds the belief that all diversity ultimately stems from a fundamental underlying unity.



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