
रथ यात्रा (पुरी)
Ratha Yatra (Puri)
(Hindu Odia chariot festival dedicated to the deity Jagannath)
Summary
पुरी की रथयात्रा
रथयात्रा, जिसे रथ जत्रा (उड़िया: ରଥଯାତ୍ରା, अर्थ: 'रथ उत्सव') भी कहा जाता है, एक प्राचीन और भव्य हिंदू त्यौहार है जो हर साल आषाढ़ महीने (जून-जुलाई) के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। यह उत्सव भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ (विष्णु या कृष्ण का एक रूप) को समर्पित है।
त्यौहार का भव्य स्वरूप:
इस दौरान, तीन देवताओं - जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा - की विशाल लकड़ी के रथों में स्थापना की जाती है। भक्तों का जनसमूह इन रथों को 'बड़ा डंडा' (मुख्य मार्ग) से गुंडिचा मंदिर तक खींचता है। देवता एक सप्ताह तक वहां निवास करते हैं और फिर जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं। इस वापसी यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
रथ यात्रा के रोचक पहलू:
- तीन रथ, तीन देवता: प्रत्येक देवता का अपना रथ होता है - भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष, बलभद्र का रथ तालध्वज और देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन कहलाता है।
- भक्त सालबेग को श्रद्धांजलि: गुंडिचा मंदिर जाते समय, भगवान जगन्नाथ का रथ, नंदीघोष, भक्त सालबेग (एक मुस्लिम भक्त) के समाधि स्थल के पास रुकता है। यह भगवान की उनके प्रति श्रद्धांजलि है।
- मौसी मां मंदिर में पोडा पीठा का भोग: गुंडिचा मंदिर से वापसी पर, तीनों देवता मौसी मां मंदिर (मामी के घर) के पास कुछ देर रुकते हैं और उन्हें पोडा पीठा का भोग लगाया जाता है। यह एक विशेष प्रकार का पैनकेक है जिसे देवताओं का प्रिय माना जाता है।
- सात दिवसीय प्रवास: सात दिनों तक गुंडिचा मंदिर में रहने के बाद, देवता अपने निवास स्थान जगन्नाथ मंदिर लौट आते हैं।
पुरी की रथयात्रा भारत के सबसे बड़े और प्राचीनतम धार्मिक आयोजनों में से एक है। यह उत्सव भक्ति, आस्था और एकता का प्रतीक है जो लाखों लोगों को एक साथ जोड़ता है।