
सतखंडागामा
Satkhandagama
(Digambara Jain sacred text)
Summary
षट्खण्डागम: दिगम्बर जैन धर्म का पवित्र ग्रंथ (Hindi Explanation with Details)
"षट्खण्डागम" जिसका अर्थ है "छह भागों में विभाजित ग्रंथ," दिगम्बर जैन धर्म का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ माना जाता है।
मौखिक परंपरा से लिखित रूप तक:
दिगम्बर परंपरा के अनुसार, भगवान महावीर की शिक्षाओं को उनके प्रमुख शिष्य "गणधर" ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से अपने शिष्यों तक पहुँचाया। यह परंपरा तब तक चली जब तक शिष्यों में श्रवण और स्मरण करने की अद्भुत क्षमता विद्यमान थी।
समय के साथ, इन क्षमताओं में गिरावट आई और शिक्षाओं को सुरक्षित रखने के लिए आचार्य पुष्पदंत और भूतबली ने इन्हें लिखित रूप दिया। इस प्रकार "षट्खण्डागम" अस्तित्व में आया, जिसे दिगम्बर जैन धर्म में "आगम" का दर्जा प्राप्त है।
महत्व और मान्यता:
"षट्खण्डागम" का दिगम्बर परंपरा में कितना महत्व है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी टीका "धवला" के पूर्ण होने के उपलक्ष्य में "श्रुत पंचमी" का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन सभी जैन धर्मग्रंथों का पूजन किया जाता है।
"षट्खण्डागम" को "प्रथम श्रुत-स्कंध" भी कहा जाता है, जबकि कुन्दकुन्द रचित "पंच परमागम" को "द्वितीय श्रुत-स्कंध" या दूसरा आगम माना जाता है।
सारांश:
संक्षेप में, "षट्खण्डागम" दिगम्बर जैन धर्म का एक अमूल्य ग्रंथ है जो भगवान महावीर की शिक्षाओं का संग्रह है और इसे आचार्य पुष्पदंत और भूतबली ने लिखित रूप दिया था। यह ग्रंथ दिगम्बर्स के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसकी मान्यता "श्रुत पंचमी" जैसे त्यौहारों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।