
सुधर्मास्वामी
Sudharmaswami
(6th century BC Indian Jain monk)
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सुधर्मास्वामी: महावीर के उत्तराधिकारी
सुधर्मास्वामी, जिन्हें सुधर्मन भी कहा जाता है, जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर, महावीर के पाँचवें गणधर थे। इनका जन्म 607 ईसा पूर्व में हुआ था और 507 ईसा पूर्व में इनकी मृत्यु हुई। महावीर के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्ति के बाद, जैन संघ का नेतृत्व सुधर्मास्वामी ने संभाला।
महत्व:
- प्रथम आचार्य: सुधर्मास्वामी जैन धर्म के प्रथम आचार्य थे जिन्होंने महावीर के ज्ञान को लिपिबद्ध करने से पहले उसे व्यवस्थित और संरक्षित किया।
- आगम साहित्य के रक्षक: सुधर्मास्वामी ने महावीर की शिक्षाओं को 'आगम' नामक ग्रंथों में संकलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आधुनिक जैन धर्म के स्तंभ: आज भी, सभी जैन आचार्य और साधु-साध्वियां सुधर्मास्वामी द्वारा स्थापित नियमों और परंपराओं का पालन करते हैं।
सुधर्मास्वामी का योगदान:
- शिक्षाओं का प्रचार: उन्होंने पूरे भारतवर्ष में यात्रा करके जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया।
- संघ का नेतृत्व: उन्होंने जैन संघ को संगठित किया और उसे मजबूत बनाया।
- ज्ञान का संरक्षण: उन्होंने जैन धर्म के पवित्र ग्रंथों की रक्षा की और उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित किया।
सुधर्मास्वामी को जैन धर्म का दूसरा संस्थापक माना जाता है। उन्होंने महावीर के ज्ञान को संरक्षित करके और उसे आगे बढ़ाकर जैन धर्म को जीवित रखा।
Sudharmaswami was the fifth ganadhara of Mahavira. All the current Jain acharyas and monks follow his rule.