Samantabhadra_(Bodhisattva)

समंतभद्र (बोधिसत्व)

Samantabhadra (Bodhisattva)

(Bodhisattva)

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समन्तभद्र: सार्वभौमिक पूजनीय

"समन्तभद्र" का अर्थ है "सार्वभौमिक पूजनीय" या "सर्वहितकारी"। यह बौद्ध धर्म में एक महान बोधिसत्व हैं जिन्हें साधना और ध्यान से जोड़ा जाता है। महायान बौद्ध धर्म में, वे शाक्यमुनि बुद्ध और बोधिसत्व मंजुश्री के साथ मिलकर "शाक्यमुनि त्रिमूर्ति" का निर्माण करते हैं।

समन्तभद्र की भूमिका:

  • लोटस सूत्र के संरक्षक: "सद्धर्मपुण्डरीक सूत्र" (लोटस सूत्र) में, समन्तभद्र इस सूत्र के रक्षक और प्रचारक के रूप में प्रमुखता से उभरते हैं।
  • दस महाव्रत: "अवताम्सक सूत्र" के अनुसार, उन्होंने दस महान व्रत लिए जो एक बोधिसत्व के आधार हैं।
  • क्रिया का प्रतीक: चीनी बौद्ध धर्म में, समन्तभद्र को "पुशियन" के रूप में जाना जाता है और उन्हें क्रिया और सक्रिय करुणा से जोड़ा जाता है, जबकि मंजुश्री प्रज्ञा (पारलौकिक ज्ञान) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • जापान में फुगेन: जापान में, इस बोधिसत्व को "फुगेन" के नाम से जाना जाता है और अक्सर तेंदई और शिंगोन बौद्ध धर्म में उनकी पूजा की जाती है।

तिब्बती बौद्ध धर्म में दो समन्तभद्र:

तिब्बती बौद्ध धर्म के ण्यिंग्मा सम्प्रदाय में, "समन्तभद्र" नाम दो अलग-अलग व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त होता है:

  1. आदि-बुद्ध: यहां, समन्तभद्र आदि-बुद्ध (आदिम बुद्ध) का नाम है, जिन्हें अक्सर अपनी पत्नी, समन्तभद्री के साथ अविभाज्य मिलन (यब-यम) में चित्रित किया जाता है।
  2. वज्रमृत्र: क्रोधित रूप में, वे ण्यिंग्मा महायोग के आठ हेरुकाओं में से एक हैं और उन्हें "वज्रमृत्र" के रूप में जाना जाता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आदि-बुद्ध समन्तभद्र और बोधिसत्व समन्तभद्र दो भिन्न व्यक्ति हैं।


Samantabhadra is a great bodhisattva in Buddhism associated with practice and meditation. Together with Shakyamuni Buddha and the bodhisattva Mañjuśrī, he forms the Shakyamuni Triad in Mahayana Buddhism. He is the patron of the Lotus Sutra and, according to the Avatamsaka Sutra, made the ten great vows which are the basis of a bodhisattva. In Chinese Buddhism, Samantabhadra is known as Pǔxián and is associated with action, whereas Mañjuśrī is associated with prajñā. In Japan, this bodhisattva is known as Fugen, and is often venerated in Tendai and Shingon Buddhism.



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