
समयसार
Samayasāra
(Jain religious text)
Summary
Info
Image
Detail
Summary
समयसार: आत्मा की प्रकृति और मुक्ति का मार्ग (हिंदी में विस्तार से)
"समयसार" आचार्य कुंदकुंद द्वारा रचित एक प्रसिद्ध जैन ग्रंथ है, जो 439 श्लोकों में आत्मा की प्रकृति, कर्म से उसके बंधन और मोक्ष (मुक्ति) के मार्ग का विस्तृत वर्णन करता है।
यह ग्रंथ दस अध्यायों में विभाजित है, जो निम्नलिखित विषयों पर प्रकाश डालते हैं:
१. जीव (आत्मा):
- जीव (आत्मा) एक अनादि, नित्य और चेतन तत्व है।
- यह कर्मों से बंधकर संसार चक्र में जन्म-मरण के चक्र में फंसता है।
- जीव का स्वरूप शुद्ध चेतना है, जो कर्मों के आवरण से ढका रहता है।
२. कर्म:
- कर्म सूक्ष्म कण होते हैं जो हमारे विचारों, भावनाओं और कर्मों से उत्पन्न होते हैं।
- ये कर्म आत्मा से चिपक जाते हैं और उसके शुद्ध स्वरूप को ढक लेते हैं।
- कर्म ही सुख-दुःख, जन्म-मरण, और संसार के बंधन का कारण हैं।
३. आस्रव (कर्मों का आगमन):
- आस्रव का अर्थ है कर्मों का आत्मा से जुड़ना।
- क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषाय (मनोविकार) आस्रव का कारण हैं।
- इन कषायों को नियंत्रित करके आस्रव को रोका जा सकता है।
४. बंध (कर्मों का बंधन):
- आस्रव से आये हुए कर्म जब आत्मा से पूरी तरह जुड़ जाते हैं, तो इसे बंध कहते हैं।
- यह बंधन जीव को बार-बार जन्म-मरण के चक्र में फंसाता है।
५. संवर (कर्मों का रुकना):
- संवर का अर्थ है आस्रव (कर्मों का आगमन) को रोकना।
- सम्यक दर्शन, ज्ञान, और चारित्र्य के पालन से संवर प्राप्त होता है।
६. निर्जरा (कर्मों का क्षय):
- निर्जरा का अर्थ है संचित कर्मों का नाश करना।
- तपस्या, ध्यान, संयम, और साधना के द्वारा कर्मों का नाश किया जा सकता है।
७. मोक्ष (मुक्ति):
- मोक्ष जैन दर्शन का अंतिम लक्ष्य है, जिसका अर्थ है कर्मों के बंधन से पूर्ण मुक्ति।
- मोक्ष की प्राप्ति के बाद आत्मा अपनी शुद्ध चेतना को प्राप्त कर लेती है और अनंत सुख का अनुभव करती है।
८. रत्नत्रय (तीन रत्न):
- सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, और सम्यक चारित्र्य जैन धर्म के तीन रत्न हैं।
- इन तीनों रत्नों के पालन से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
९. गुणस्थान:
- समयसार में जीव की आध्यात्मिक उन्नति के 14 सोपानों (गुणस्थानों) का वर्णन मिलता है।
- यह वर्णन जीव को अपनी आध्यात्मिक स्थिति को समझने में मदद करता है।
१०. आचार-विचार:
- समयसार में जीव को शुद्ध आचरण और विचारों का पालन करने के लिए प्रेरित किया गया है।
- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह पाँच महाव्रतों का पालन मोक्ष मार्ग में महत्वपूर्ण है।
समयसार जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो आत्मा की प्रकृति, कर्म के सिद्धांत, और मोक्ष के मार्ग को सरल और स्पष्ट भाषा में समझाता है। यह ग्रंथ जैन साधकों के लिए एक मार्गदर्शक ग्रंथ का काम करता है।
Samayasāra is a famous Jain text composed by Acharya Kundakunda in 439 verses. Its ten chapters discuss the nature of Jīva, its attachment to Karma and Moksha (liberation). Samayasāra expounds the Jain concepts like Karma, Asrava, Bandha (Bondage), Samvara (stoppage), Nirjara (shedding) and Moksha.