
बौद्ध तर्क-मीमांसा
Buddhist logico-epistemology
(Epistemological study of Buddhism)
Summary
बौद्ध तर्कशास्त्र और ज्ञानमीमांसा: एक विस्तृत व्याख्या
"बौद्ध तर्कशास्त्र और ज्ञानमीमांसा" पश्चिमी विद्वानों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक शब्द है जो बौद्ध प्रणालियों प्रमाण (ज्ञानमीमांसा उपकरण, वैध अनुभूति) और हेतु-विद्या (तर्क, तर्कशास्त्र) का वर्णन करता है। यह शब्द तर्क और ज्ञानमीमांसा पर विभिन्न बौद्ध प्रणालियों और विचारों का उल्लेख कर सकता है, लेकिन इसका उपयोग अक्सर "ज्ञानमीमांसा स्कूल" (संस्कृत: प्रमाण-वाद) के काम का उल्लेख करने के लिए किया जाता है, अर्थात दिङ्नाग और धर्मकीर्ति का स्कूल जो 5 वीं से 7 वीं शताब्दी तक विकसित हुआ और भारत में बौद्ध धर्म के पतन तक बौद्ध तर्क की मुख्य प्रणाली बनी रही।
प्रारंभिक बौद्ध ग्रंथों से पता चलता है कि ऐतिहासिक बुद्ध बहस के प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाने वाले तर्क के कुछ नियमों से परिचित थे और अपने विरोधियों के खिलाफ इनका उपयोग करते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने ज्ञानमीमांसा और तर्क के बारे में कुछ विचार भी रखे थे, हालाँकि उन्होंने कोई तार्किक-ज्ञानमीमांसीय प्रणाली नहीं रखी थी।
थेरवाद कथावत्थु में बहस और तर्क पर कुछ नियम हैं। तार्किक और ज्ञानमीमांसा संबंधी मुद्दों पर व्यवस्थित रूप से चर्चा करने वाले पहले बौद्ध विचारक वसुबंधु थे जिन्होंने अपनी रचना वाद-विधि (तर्क के लिए एक विधि) में ऐसा किया था।
बौद्ध तर्क और ज्ञानमीमांसा की एक परिपक्व प्रणाली की स्थापना बौद्ध विद्वान दिङ्नाग (लगभग 480-540 ईस्वी) ने अपनी महान कृति प्रमाण-समुच्चय में की थी। धर्मकीर्ति ने इस प्रणाली को कई नवाचारों के साथ और विकसित किया। उनकी रचना प्रमाणवर्तिका ("वैध अनुभूति पर टीका") इसका प्रमाण है। उनका काम बाद के सभी बौद्ध दार्शनिक प्रणालियों के साथ-साथ कई हिंदू विचारकों को भी प्रभावित करता रहा है। यह तिब्बती बौद्ध धर्म में ज्ञानमीमांसा और तर्क का मुख्य स्रोत भी बना।
विस्तार से:
- प्रमाण: यह शब्द ज्ञान के विश्वसनीय साधनों को दर्शाता है। दिङ्नाग ने चार प्रकार के प्रमाणों का वर्णन किया: प्रत्यक्ष (प्रत्यक्ष अनुभव), अनुमान (अनुमान), उपमान (तुलना), और शब्द (विश्वसनीय गवाही)।
- हेतु-विद्या: यह तर्क और तर्कशास्त्र के अध्ययन को संदर्भित करता है। बौद्ध तर्कशास्त्री तर्क की संरचना और वैध तर्कों के निर्माण के नियमों में रुचि रखते थे।
- प्रमाण-वाद: यह बौद्ध दर्शन का एक स्कूल है जो ज्ञानमीमांसा और तर्क पर केंद्रित है। दिङ्नाग और धर्मकीर्ति इस स्कूल के प्रमुख प्रतिपादक थे।
बौद्ध तर्कशास्त्र और ज्ञानमीमांसा का भारतीय दर्शन के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसने न केवल बौद्ध धर्म के भीतर बल्कि हिंदू धर्म, जैन धर्म और अन्य भारतीय परंपराओं में भी दार्शनिक जाँच के तरीके को आकार देने में मदद की।