Dignāga

दिग्नागा

Dignāga

(Indian logician)

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दिग्नाग: भारतीय तर्कशास्त्र के जनक (हिंदी में विस्तृत विवरण)

दिग्नाग (लगभग 480-540 ईस्वी), जिन्हें 'दिंनाग' भी कहा जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय बौद्ध विद्वान थे और भारतीय तर्कशास्त्र (हेतु विद्या) के संस्थापकों में से एक माने जाते हैं। दिग्नाग का कार्य भारत में न्यायशास्त्र (Deductive Logic) के विकास की नींव रखता है और उन्होंने बौद्ध तर्कशास्त्र और ज्ञानमीमांसा (प्रमाण) की पहली प्रणाली बनाई।

जॉर्जेस बी. ड्रेफस के अनुसार, उनके दार्शनिक विचारों ने भारतीय दर्शन में एक "ज्ञानमीमांसा क्रांति" ला दी और यह "भारत और तिब्बत में बौद्ध तर्कशास्त्र और ज्ञानमीमांसा का मानक सूत्रीकरण" बन गया। दिग्नाग के विचारों ने धर्मकीर्ति जैसे बाद के बौद्ध दार्शनिकों और न्याय दर्शन के हिंदू विचारकों को भी प्रभावित किया।

दिग्नाग की ज्ञानमीमांसा ने केवल "प्रत्यक्ष" और "अनुमान" को ज्ञान के वैध साधनों के रूप में स्वीकार किया और भाषाई अर्थ को समझाने के लिए "अपोह" (exclusion) के व्यापक प्रभावशाली सिद्धांत का परिचय दिया। भाषा, अनुमान और धारणा पर उनके काम का बाद के भारतीय दार्शनिकों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा। रिचर्ड पी. हेस के अनुसार, "जो कोई भी भारतीय विचारों के ऐतिहासिक विकास को समझना चाहता है, उसे दिग्नाग के तर्कों और निष्कर्षों से परिचित होना आवश्यक है।"

दिग्नाग का जन्म कांचीपुरम के पास सिंहवक्त में हुआ था। उनके शुरुआती जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। यह ज्ञात है कि उन्होंने वसुबंधु के छात्र बनने से पहले पुद्गलवाद विचारधारा के अनुयायी नागदत्त को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाया था।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • दिग्नाग ने भारतीय तर्कशास्त्र और ज्ञानमीमांसा की नींव रखी।
  • उन्होंने "प्रत्यक्ष" और "अनुमान" को ज्ञान के दो वैध साधन माना।
  • "अपोह" का सिद्धांत दिग्नाग की महत्वपूर्ण देन है।
  • भाषा, अनुमान और धारणा पर उनके काम का भारतीय दर्शन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

Dignāga was an Indian Buddhist scholar and one of the Buddhist founders of Indian logic. Dignāga's work laid the groundwork for the development of deductive logic in India and created the first system of Buddhist logic and epistemology (Pramana).



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