Jain_philosophy

जैन दर्शन

Jain philosophy

(Indian philosophical tradition within Jainism)

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जैन दर्शन: सरल भाषा में विस्तृत विवरण

जैन दर्शन, जैन धर्म का प्राचीन भारतीय दार्शनिक चिंतन है। इसमें महावीर के निर्वाण (लगभग 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व) के बाद प्राचीन भारत में जैन धर्म की प्रारंभिक शाखाओं के बीच विकसित हुई सभी दार्शनिक जाँच और अन्वेषण प्रणालियाँ शामिल हैं।

मुख्य विशेषताएँ:

  • द्वैतवाद (Dualism): जैन दर्शन की एक मुख्य विशेषता इसका द्वैतवादी तत्वमीमांसा है। इसके अनुसार अस्तित्व की दो अलग-अलग श्रेणियां हैं: जीवित, चेतन प्राणी (जीव) और निर्जीव या भौतिक तत्व (अजीव)।
  • मुक्ति का मार्ग: जैन दर्शन मुख्य रूप से जीवित प्राणियों की प्रकृति, कर्म की प्रक्रियाओं से इन प्राणियों के बंधन (जिन्हें सूक्ष्म भौतिक कण माना जाता है) और मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र (संसार) से जीवित प्राणियों को कैसे मुक्त किया जा सकता है (मोक्ष), को समझने से संबंधित है।
  • अहिंसा का महत्व: जैन धर्म की एक ख़ासियत यह है कि यह अहिंसा के अनिवार्य सिद्धांत के साथ कई त्यागी मुक्तिदाई प्रथाओं को जोड़ता है।
  • अनादि और चक्रीय ब्रह्मांड: जैन धर्म और इसकी दार्शनिक प्रणाली एक बिना शुरुआत और अंत वाले चक्रीय ब्रह्मांड में विश्वास के लिए भी उल्लेखनीय है। यह एकेश्वरवादी मान्यताओं को खारिज करते हुए, एक सृष्टिकर्ता देवता के विचार को पूरी तरह से अस्वीकार करता है।

मुख्य विषय:

जैन ग्रंथों में कई दार्शनिक विषयों पर चर्चा की गई है, जैसे:

  • ब्रह्मांड विज्ञान (Cosmology): ब्रह्मांड की उत्पत्ति, संरचना और कार्यप्रणाली का अध्ययन
  • ज्ञानमीमांसा (Epistemology): ज्ञान की प्रकृति, उत्पत्ति और सीमाओं का अध्ययन
  • नैतिकता (Ethics): सही और गलत व्यवहार के सिद्धांतों का अध्ययन
  • तत्वमीमांसा (Metaphysics): वास्तविकता की प्रकृति, अस्तित्व और कारणता का अध्ययन
  • तत्त्वज्ञान (Ontology): अस्तित्व की प्रकृति और श्रेणियों का अध्ययन
  • समय का दर्शन (Philosophy of Time): समय की प्रकृति, अतीत, वर्तमान और भविष्य की अवधारणाओं का अध्ययन
  • मोक्षशास्त्र (Soteriology): मुक्ति या आध्यात्मिक मुक्ति के सिद्धांत का अध्ययन

ऐतिहासिक विकास:

इतिहासकार जैन विचारों के विकास को प्राचीन भारत में कुछ प्रमुख हस्तियों, मुख्य रूप से महावीर (लगभग 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व, गौतम बुद्ध के समकालीन) और संभवतः पार्श्वनाथ (लगभग 8वीं या 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व, हालांकि यह विवादित है) से जोड़ते हैं। जैन मान्यता के अनुसार, जैन दर्शन शाश्वत है और सुदूर अतीत में महान प्रबुद्ध तीर्थंकरों द्वारा कई बार इसका उपदेश दिया गया है।

पॉल डंडास के अनुसार, जैन दर्शन अपने लंबे इतिहास में अपेक्षाकृत स्थिर बना हुआ है और कोई बड़ा आमूल-चूल सद्धांतिक परिवर्तन नहीं हुआ है। इसका मुख्य कारण उमास्वती के तत्त्वार्थसूत्र का प्रभाव है, जो सभी जैनियों के बीच केंद्रीय आधिकारिक दार्शनिक ग्रंथ बना हुआ है।


Jain philosophy or Jaina philosophy refers to the ancient Indian philosophical system of the Jain religion. It comprises all the philosophical investigations and systems of inquiry that developed among the early branches of Jainism in ancient India following the parinirvāṇa of Mahāvīra. One of the main features of Jain philosophy is its dualistic metaphysics, which holds that there are two distinct categories of existence: the living, conscious, or sentient beings (jīva) and the non-living or material entities (ajīva).



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