
धर्म (जैन धर्म)
Dharma (Jainism)
(Jain philosophical concept)
Summary
जैन धर्म में "धर्म" का अर्थ (Meaning of "Dharma" in Jainism)
विकिपीडिया में दिए गए अंश में जैन धर्म में "धर्म" शब्द के विभिन्न अर्थों का उल्लेख किया गया है. आइए इसे और विस्तार से समझते हैं:
१. धर्म का सामान्य अर्थ (General Meaning of Dharma):
जैन ग्रंथों में संस्कृत शब्द "धर्म" या प्राकृत शब्द "धम्म" का प्रयोग विस्तृत अर्थों में किया गया है. आमतौर पर इसका अनुवाद "धर्म" के रूप में किया जाता है और इसीलिए जैन धर्म को उसके अनुयायियों द्वारा "जैन धर्म" कहा जाता है.
२. जैन धर्म में धर्म के विशिष्ट अर्थ (Specific Meanings of Dharma in Jainism):
जैन धर्म में, "धर्म" शब्द का प्रयोग निम्नलिखित अर्थों में होता है:
- धर्म: यह जैन धर्म के सिद्धांतों, मान्यताओं और आचरणों का समग्र रूप है.
- धर्मास्तिकाय: यह जैन दर्शन के छह द्रव्यों (पदार्थों) में से एक है जो गति का कारण है. यह ब्रह्मांड में हर प्रकार की गति को संभव बनाता है.
- वस्तु का वास्तविक स्वरूप: जैन दर्शन के अनुसार, हर वस्तु का एक वास्तविक स्वरूप होता है और यही उसका धर्म है. उदाहरण के लिए, अग्नि का धर्म गर्मी और प्रकाश देना है.
- दस धर्म: जैन धर्म में दस सद्गुणों को भी धर्म कहा जाता है. ये हैं: क्षमा, मार्दव, आर्जव, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, सत्य, अहिंसा, अस्तेय, संतोष और तप.
३. निष्कर्ष (Conclusion):
जैन धर्म में "धर्म" एक बहुआयामी शब्द है जिसका अर्थ संदर्भ के अनुसार बदलता है. यह जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों और मान्यताओं को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण अवधारणा है.