
केवला ज्ञान
Kevala jnana
(Omniscience in Jainism)
Summary
केवल ज्ञान: जैन धर्म में संपूर्ण ज्ञान
केवल ज्ञान, जिसे कैवल्य भी कहा जाता है, जैन धर्म में सर्वज्ञता का प्रतीक है। इसका अर्थ है पूर्ण समझ या परम ज्ञान।
जैन धर्म के अनुसार, केवल ज्ञान सभी आत्माओं का एक स्वाभाविक गुण है। यह गुण कर्म के कणों से ढका रहता है जो आत्मा को घेरे रहते हैं। हर आत्मा में इन कर्म कणों को हटाकर सर्वज्ञता प्राप्त करने की क्षमता होती है। जैन ग्रंथों में बारह चरणों का उल्लेख है जिनके माध्यम से आत्मा इस लक्ष्य को प्राप्त करती है।
केवल ज्ञान प्राप्त करने वाली आत्मा को केवलिन कहा जाता है। जैन धर्म के अनुसार, केवल केवलिन ही सभी पहलुओं और अभिव्यक्तियों में वस्तुओं को समझ सकते हैं; अन्य केवल आंशिक ज्ञान ही प्राप्त कर सकते हैं।
दिगंबर और श्वेतांबर:
जैन धर्म के दो संप्रदायों, दिगंबर और श्वेतांबर, के विचार केवलिन के विषय पर भिन्न हैं।
दिगंबरों के अनुसार, एक केवलिन को भूख या प्यास का अनुभव नहीं होता है। वे गतिहीन अवस्था में पद्मासन में बैठे रहते हैं और उनके शरीर से दिव्यध्वनि निकलती है, जिसे उनके अनुयायी मूलभूत सत्य के रूप में व्याख्यायित करते हैं।
श्वेतांबरों के अनुसार, एक केवलिन को सामान्य मानवीय आवश्यकताओं होती हैं और वह यात्रा भी करते हैं और धर्मोपदेश भी देते हैं।
अंतिम केवलिन:
दोनों परंपराओं के अनुसार, अंतिम केवलिन, अंतिम तीर्थंकर, महावीर के ग्यारह प्रमुख शिष्यों में से एक के शिष्य थे; उनका नाम जम्बूस्वामी दर्ज है। यह भी माना जाता है कि जम्बूस्वामी के बाद किसी को भी केवल ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता नहीं होगी।
संक्षेप में:
- केवल ज्ञान जैन धर्म में पूर्ण ज्ञान या सर्वज्ञता को दर्शाता है।
- यह सभी आत्माओं का स्वाभाविक गुण है जो कर्म के बंधन से मुक्त होने पर प्रकट होता है।
- केवल ज्ञान प्राप्त करने वाले को केवलिन कहा जाता है।
- दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदायों के विचार केवलिन की स्थिति और क्षमताओं के बारे में भिन्न हैं।
- जैन परंपरा के अनुसार जम्बूस्वामी अंतिम केवलिन थे।
यह जानकारी जैन धर्म के एक महत्वपूर्ण पहलू, केवल ज्ञान, को समझने में सहायक होगी।