Dirghatamas

डिरघतमास

Dirghatamas

(Hindu sage)

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महर्षि दीर्घतमस: ऋग्वेद के एक महान द्रष्टा

महर्षि दीर्घतमस (दीर्घतमस्) प्राचीन भारत के एक महान ऋषि थे जिन्हें ऋग्वेद में उनके दार्शनिक सूक्तों के लिए जाना जाता है। वे ऋग्वेद के पहले मंडल (अध्याय) के सूक्त १४० से १६४ तक के रचयिता थे।

यहां दीर्घतमस जी के बारे में कुछ और जानकारी दी गई है:

  • नाम का अर्थ: "दीर्घतमस" शब्द का अर्थ है "जिसका तम यानी अंधकार दूर हो गया हो" या "दीर्घ तमस्" - जिसने बहुत लम्बे समय तक तम (अज्ञान) में बिताया हो।
  • जन्म: कुछ कथाओं के अनुसार, दीर्घतमस ऋषि उतथ्य और ममता के पुत्र थे। एक अन्य कथा के अनुसार, वे ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे।
  • अंधत्व: कहा जाता है कि दीर्घतमस जन्म से ही अंधे थे। उन्होंने अपनी दृष्टि दिव्य ज्ञान और तपस्या से प्राप्त की थी।
  • ज्ञान और शिक्षा: महर्षि दीर्घतमस वेदों के प्रकांड विद्वान थे। वे अपने शिष्यों को भी वेदों का ज्ञान प्रदान करते थे।
  • योगदान: दीर्घतमस जी ने ईश्वर, सृष्टि, आत्मा, कर्म, धर्म, और मोक्ष जैसे गंभीर विषयों पर अपने सूक्तों में प्रकाश डाला है। उनके सूक्त दार्शनिक गहनता और काव्य सौंदर्य से परिपूर्ण हैं।

महर्षि दीर्घतमस वैदिक काल के एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे। उनके सूक्त आज भी हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने में मदद करते हैं।


Dirghatamas was an ancient Indian sage well known for his philosophical verses in the Rigveda. He was the author of Suktas (hymns) 140 to 164 in the first mandala (section) of the Rigveda.



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