Saṃsāra_(Jainism)

संसार (जैन धर्म)

Saṃsāra (Jainism)

(In Jainism, continuous rebirths and reincarnations in various realms of existence)

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जैन धर्म में संसार: दुखों का चक्र और मोक्ष का मार्ग (Samsara in Jainism: The Cycle of Suffering and the Path to Liberation)

जैन धर्म में, संसार का अर्थ है जीवन-मरण का वह अंतहीन चक्र जिसमें आत्मा विभिन्न लोकों (realms) में जन्म लेती और मृत्यु को प्राप्त करती रहती है। यह एक दुखों और कष्टों से भरा हुआ अस्तित्व माना जाता है, जो कि अवांछनीय है और जिससे मुक्ति पाना ही जीवन का उद्देश्य है।

संसार की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं:

  • अनादि: संसार का कोई आरंभ नहीं है। आत्मा अनादि काल से ही कर्मों के बंधन में बंधी हुई है।
  • कर्म का सिद्धांत: जैन धर्म के अनुसार, हमारे सभी कर्म, चाहे अच्छे हों या बुरे, सूक्ष्म कर्म कणों के रूप में आत्मा से जुड़ जाते हैं। यही कर्म हमारे अगले जन्म और जीवन की परिस्थितियों को निर्धारित करते हैं।
  • मोक्ष: संसार से मुक्ति पाने की अवस्था को मोक्ष कहते हैं। यह जैन धर्म का परम लक्ष्य है। मोक्ष प्राप्ति के लिए कर्म बंधन से मुक्त होना आवश्यक है।

संसार से मुक्ति कैसे?:

जैन दर्शन के अनुसार, तीन रत्न (सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण) के पालन से कर्म बंधन से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति संभव है।

विवरण:

  • सम्यक दर्शन: जैन तत्वज्ञान में सही विश्वास रखना।
  • सम्यक ज्ञान: जैन सिद्धांतों को सही ढंग से समझना।
  • सम्यक आचरण: जीवन को जैन नैतिकता के अनुसार जीना।

निष्कर्ष:

जैन धर्म में संसार को दुखों का चक्र माना जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए कर्म बंधन से मुक्ति आवश्यक है, जो कि तीन रत्नों के पालन से संभव है।


Saṃsāra (transmigration) in Jain philosophy, refers to the worldly life characterized by continuous rebirths and reincarnations in various realms of existence. Saṃsāra is described as mundane existence, a life full of suffering and misery, and hence it is considered undesirable and worth renunciation. The Saṃsāra is without any beginning, and the soul finds itself in bondage with its karma since the beginning-less time. Moksha is the only way to be liberated from saṃsāra.



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