बुद्धाभिषेक
Buddhābhiṣeka
(Buddhist rituals used to consecrate images of the Buddha and bodhisattvas)
Summary
बुद्धाभिषेक: बुद्ध की मूर्तियों को पवित्र करने का बौद्ध अनुष्ठान
बुद्धाभिषेक (पाळी: बुद्धाभिसेक; संस्कृत: बुद्धाभिषेक) एक महत्वपूर्ण बौद्ध धार्मिक अनुष्ठान है जिसका उपयोग बुद्ध और अन्य बौद्ध व्यक्तित्वों, जैसे कि बोधिसत्वों, की छवियों या मूर्तियों को पवित्र करने के लिए किया जाता है।
इस अनुष्ठान को और अच्छे से समझने के लिए, आइए इसके विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से नज़र डालें:
अर्थ: "बुद्धाभिषेक" शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - "बुद्ध" जिसका अर्थ है "जागृत" या "प्रबुद्ध" और "अभिषेक" जिसका अर्थ है "अभिषेक" या "राज्याभिषेक"। इस प्रकार, बुद्धाभिषेक का शाब्दिक अर्थ है "बुद्ध का अभिषेक"।
उद्देश्य: इस अनुष्ठान का मुख्य उद्देश्य मूर्ति में बुद्ध के गुणों और आशीर्वाद को आमंत्रित करना है। ऐसा माना जाता है कि बुद्धाभिषेक के बाद, मूर्ति केवल एक कलाकृति नहीं रहती बल्कि स्वयं बुद्ध का एक जीवंत प्रतिनिधित्व बन जाती है।
विधि: बुद्धाभिषेक अनुष्ठान विभिन्न बौद्ध परंपराओं में थोड़ा भिन्न हो सकता है, लेकिन सामान्य तौर पर इसमें निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
- शुद्धिकरण: सबसे पहले, मूर्ति को पानी, सुगंधित जल, और अन्य पवित्र वस्तुओं से शुद्ध किया जाता है।
- पूजा: इसके बाद, मूर्ति की पूजा फूल, धूप, दीपक, और भोजन आदि अर्पित करके की जाती है।
- मंत्र उच्चारण: भिक्षु या लामा विशेष मंत्रों का जाप करते हैं, जो बुद्ध के गुणों और आशीर्वाद को आमंत्रित करने में मदद करते हैं।
- अभिषेक: अंत में, मूर्ति को पवित्र जल, सुगंधित तेल, औषधीय जड़ी बूटियों और अन्य पवित्र पदार्थों से अभिषेक किया जाता है।
महत्व: बौद्ध धर्म में बुद्धाभिषेक एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है क्योंकि यह भक्तों को बुद्ध के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस अनुष्ठान में भाग लेता है या साक्षी बनता है, उसे बुद्ध के आशीर्वाद और पुण्य की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष: बुद्धाभिषेक बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र अनुष्ठान है जो बुद्ध की शिक्षाओं और उनके प्रति श्रद्धा को जीवंत रखता है।