
मूल मंत्र
Mul Mantar
(Opening words of the Sikh scripture, the Guru Granth Sahib)
Summary
मूल मंत्र: सिख धर्म का मूल मंत्र
मूल मंत्र (पंजाबी: ਮੂਲ ਮੰਤਰ, IPA: [muːlᵊ mən̪t̪əɾᵊ]) सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रारंभिक पद है। यह पंजाबी भाषा में गुरुमुखी लिपि में लिखे बारह शब्दों से बना है और सिख धर्म में सबसे प्रसिद्ध है। ये शब्द गुरु नानक देव जी के मुख्य उपदेशों का सारांश प्रस्तुत करते हैं, जिससे सिख धर्म की सारगर्भित शिक्षा का संक्षिप्त विवरण मिलता है।
अनुवाद:
मूल मंत्र का अनुवाद अलग-अलग तरीके से किया जाता है, विशेष रूप से पहले दो शब्दों के अर्थ पर मतभेद होते हैं। इनका अनुवाद "एक ईश्वर है", "एक वास्तविकता है", "यह अस्तित्व एक है" और अन्य रूपों में किया जाता है। कई बार इन अनुवादों में "god" में 'g' या "reality" में 'r' को बड़ा करके लिखने से अंग्रेजी में अर्थ बदल जाता है। कुछ इसे एकेश्वरवाद मानते हैं, जबकि कुछ इसे एकत्ववाद मानते हैं। सामान्यतः इसे एकेश्वरवाद के रूप में स्वीकार किया जाता है, लेकिन यह यहूदी-ईसाई धर्मों के एकेश्वरवाद से अलग है। यह "गुरु नानक देव जी का एकत्व के प्रति रहस्यमय ज्ञान है जो अनेक रूपों में प्रकट होता है।"
पहले दो शब्दों के बाद के दस शब्दों का शाब्दिक अर्थ है: सच्चा नाम, सृष्टिकर्ता, भय रहित, द्वेष रहित, कालातीत रूप, जन्म से परे, स्वयंभू, गुरु की कृपा से ज्ञात।
इतिहास:
यह पद सोलहवीं सदी में कई रूपों में मौजूद था, लेकिन सत्रहवीं सदी में गुरु अर्जन देव जी ने इसका अंतिम रूप दिया। मूल मंत्र के मुख्य तत्व गुरु नानक देव जी की रचनाओं में पाए जाते हैं, जिनमें अकाल पुरख (परम सत्ता) के लिए उन्होंने कई विशेषणों का उपयोग किया है।
सारांश:
मूल मंत्र सिख धर्म की आधारशिला है। यह एकत्व, भय और द्वेष से मुक्ति, और ईश्वर की कृपा पर जोर देता है। इसे सिख धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और हर दिन इसका जाप किया जाता है।