
उत्तर कर्नाटक में जैन धर्म
Jainism in North Karnataka
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जैन धर्म का उत्कर्ष उत्तरी कर्नाटक में: एक विस्तृत विवरण
उत्तरी कर्नाटक में जैन धर्म का विकास और उत्कर्ष कई राजवंशों के शासनकाल में हुआ, जिनमें प्रमुख थे चालुक्य, कदम्ब, राष्ट्रकूट और विजयनगर साम्राज्य। इन राजवंशों ने जैन धर्म को न केवल अपना संरक्षण प्रदान किया, बल्कि स्वयं भी धार्मिक भावना से ओतप्रोत होकर जैन मंदिरों के निर्माण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
राजकीय धर्म का दर्जा: जैन धर्म को जनता, विशेषकर शासक वर्ग और व्यापारी समुदाय, के बीच उच्च सम्मान प्राप्त था। इसे प्रभावी रूप से राजधर्म का दर्जा प्राप्त था।
प्रमुख योगदान:
- चालुक्य: चालुक्य शासकों ने जैन मंदिरों और विहारों के निर्माण को प्रोत्साहित किया।
- कदम्ब: कदम्ब शासन के दौरान भी जैन धर्म का प्रसार हुआ और कई मंदिर स्थापित हुए।
- राष्ट्रकूट: राष्ट्रकूट शासकों ने जैन विद्वानों और आचार्यों को संरक्षण प्रदान किया, जिससे जैन धर्म और साहित्य का विकास हुआ।
- विजयनगर साम्राज्य: विजयनगर साम्राज्य के दौरान जैन धर्म का प्रभाव क्षेत्र और भी विस्तृत हुआ।
उत्तरी कर्नाटक में आज भी कई प्राचीन और भव्य जैन मंदिर मौजूद हैं, जो इस क्षेत्र में जैन धर्म के गौरवशाली इतिहास के साक्षी हैं। इनमें श्रवणबेलगोला, Moodabidri, Karkala और Lakkundi के मंदिर प्रमुख हैं।
Jainism in North Karnataka flourished under the Chalukyas, Kadamba, Rashtrakutas, and Vijayanagara Empire. Imbued with religious feeling, patronage was extended towards the building of Jain temple and it garnered high repute among the people, particularly the ruling classes and the mercantile community; effectively getting treated as the state religion.