
उद्दालक आरुणी
Uddālaka Āruṇi
(Vedic sage)
Summary
उद्दालक आरुणि: एक महान वैदिक ऋषि
उद्दालक आरुणि, जिन्हें उद्दालक, आरुणि या उद्दालक वरुणि भी कहा जाता है, एक पूजनीय वैदिक ऋषि थे। वे ८वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुए थे। उनका उल्लेख अनेक वैदिक ग्रंथों में मिलता है, और उनके दार्शनिक उपदेश बृहदारण्यक उपनिषद और छान्दोग्य उपनिषद, जो दो सबसे प्राचीन उपनिषदों में से हैं, में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
एक प्रसिद्ध गुरु:
आरुणि एक प्रसिद्ध वैदिक शिक्षक थे। वे बुद्ध से कुछ शताब्दियों पहले हुए थे। उनके पास भारतीय उपमहाद्वीप के दूर-दराज के क्षेत्रों से छात्र आते थे। उनके कुछ शिष्य, जैसे कि याज्ञवल्क्य, हिंदू परंपरा में भी अत्यधिक पूजनीय हैं। आरुणि और याज्ञवल्क्य, दोनों ही हिंदू धर्म में सबसे अधिक उल्लिखित उपनिषदिक शिक्षकों में से हैं।
प्रथम दार्शनिकों में से एक:
तेल अवीव विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर एमेरिटस, बेन-अमी शारफस्टीन के अनुसार, उद्दालक आरुणि लिखित इतिहास के पहले दार्शनिकों में से एक थे। देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय ने उद्दालक आरुणि को दुनिया के बौद्धिक इतिहास में पहला 'प्राकृतिक वैज्ञानिक' स्थापित किया।
छान्दोग्य उपनिषद में आरुणि:
छान्दोग्य उपनिषद में, आरुणि वास्तविकता और सत्य की प्रकृति से संबंधित आध्यात्मिक प्रश्न पूछते हैं। वे निरंतर परिवर्तन का निरीक्षण करते हैं, और पूछते हैं कि क्या कुछ शाश्वत और अपरिवर्तनशील है? अपने पुत्र के साथ संवाद में अंतर्निहित इन प्रश्नों से, वे आत्मा और ब्रह्म की अवधारणा प्रस्तुत करते हैं।
आरुणि का महत्व:
उद्दालक आरुणि भारतीय दर्शन और अध्यात्म के विकास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं। उनके विचारों ने उपनिषदों और बाद के भारतीय दर्शन को गहराई से प्रभावित किया। उनका जीवन और शिक्षाएँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं।