
अतीशा
Atiśa
(Scholar of Madhyamaka Buddhism (982–1054))
Summary
अतीश दीपांकर: बंगाल के महान बौद्ध गुरु
अतीश दीपांकर (लगभग 982-1054 ईस्वी) बंगाल के एक महान बौद्ध धर्मगुरु और विद्वान थे। उन्हें बिहार के विक्रमशिला विश्वविद्यालय में अपने कार्य के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। वे 11वीं शताब्दी में महायान और वज्रयान बौद्ध धर्म के प्रसार में एक प्रमुख व्यक्ति थे और उन्होंने तिब्बत से लेकर सुमात्रा तक बौद्ध विचारों को प्रभावित किया। उन्हें मध्यकालीन बौद्ध धर्म के सबसे महान व्यक्तियों में से एक माना जाता है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
- अतीश दीपांकर का जन्म वर्तमान बांग्लादेश के बंगाल क्षेत्र में हुआ था।
- उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर में ही प्राप्त की और कम उम्र में ही बौद्ध धर्म के प्रति गहरी आस्था विकसित कर ली।
- उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु उन्होंने भारत के विभिन्न स्थानों की यात्रा की और अनेक प्रसिद्ध गुरुओं से शिक्षा ग्रहण की।
विक्रमशिला विश्वविद्यालय में योगदान:
- अतीश ने बिहार स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय में एक आचार्य के रूप में कार्य किया, जो उस समय बौद्ध शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था।
- यहाँ उन्होंने अनेक छात्रों को शिक्षा दी और बौद्ध धर्म के विभिन्न पहलुओं पर ग्रंथ भी लिखे।
- उनका ज्ञान और विद्वता इतनी प्रसिद्ध थी कि तिब्बत के राजा ने उन्हें अपने राज्य में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए आमंत्रित किया।
तिब्बत में धर्म प्रचार:
- तिब्बत पहुँचकर अतीश ने वहाँ के लोगों को बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का सरल और सुगम तरीके से ज्ञान दिया।
- उन्होंने 'बोधिपथप्रदीप' नामक एक महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की, जो आज भी तिब्बती बौद्ध धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।
- अतीश ने तिब्बती बौद्ध धर्म के विकास में अहम भूमिका निभाई और उनके शिष्य धर्मतोन्द ने 'कदम' परंपरा की स्थापना की।
अतीश दीपांकर की विरासत:
- अतीश दीपांकर एक महान विद्वान, धर्मगुरु और लेखक थे जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- वे करुणा, प्रज्ञा और अहिंसा के प्रतीक थे और उनके विचार आज भी विश्व भर के लोगों को प्रेरित करते हैं।
- 2004 में, बीबीसी द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में अतीश को 'सर्वाधिक महान बंगाली' की सूची में 18वाँ स्थान प्राप्त हुआ।
निष्कर्ष:
अतीश दीपांकर, बौद्ध धर्म के एक महान हस्ती थे जिन्होंने न केवल भारत बल्कि तिब्बत में भी धर्म के प्रचार-प्रसार में अभूतपूर्व योगदान दिया। उनके विचार और शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और मानवता को एक बेहतर दिशा दिखाते हैं।