Śūnyatā

शून्यता

Śūnyatā

(Religious concept of emptiness)

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शून्यता: एक विस्तृत व्याख्या

"शून्यता," जिसे अक्सर "खालीपन," "रिक्तता" या कभी-कभी "अस्तित्वहीनता" के रूप में अनुवादित किया जाता है, एक महत्वपूर्ण भारतीय दार्शनिक अवधारणा है। हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और अन्य दार्शनिक धाराओं में, इस अवधारणा के अपने सैद्धांतिक संदर्भ के आधार पर अनेक अर्थ हैं। यह या तो वास्तविकता की एक सत्तामीमांसा संबंधी विशेषता है, एक ध्यान की स्थिति है, या अनुभव का एक घटना-क्रियात्मक विश्लेषण है।

थेरवाद बौद्ध धर्म में:

  • "सुञ्ञता" अक्सर पाँच स्कंधों (रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान) और छह इंद्रियों (आँख, कान, नाक, जीभ, शरीर, मन) की अनात्मवादी प्रकृति को दर्शाता है।
  • इसका उपयोग अक्सर एक ध्यान अवस्था या अनुभव को संदर्भित करने के लिए भी किया जाता है।

महायान बौद्ध धर्म में:

  • "शून्यता" इस सिद्धांत को संदर्भित करती है कि "सभी चीजें आंतरिक अस्तित्व और प्रकृति (स्वभाव) से रहित हैं।"
  • यह बुद्ध-प्रकृति की शिक्षाओं और आदिकालीन या रिक्त जागरूकता को भी संदर्भित कर सकती है, जैसा कि जोग्चन, शेंटोंग या चान में है।

विस्तार से:

थेरवाद बौद्ध धर्म में:

थेरवाद बौद्ध धर्म में, शून्यता मुख्य रूप से अनात्म (अनात्मन) की अवधारणा से जुड़ी है। यह इस विचार को दर्शाता है कि हमारी धारणा में आने वाली कोई भी चीज़, चाहे वह भौतिक हो या मानसिक, एक स्थायी, स्वतंत्र "आत्मा" या "स्व" नहीं है। पाँच स्कंध, जो हमारे अस्तित्व को बनाने वाले भौतिक और मानसिक कारकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, निरंतर परिवर्तन की स्थिति में हैं। इनमें से किसी भी स्कंध को "मैं" या "मेरा" नहीं कहा जा सकता है।

इस प्रकार, शून्यता हमें इस भ्रम से मुक्त करती है कि हम एक स्थायी आत्मा हैं और हमें दुःख के मूल कारण, आसक्ति और अज्ञानता से मुक्ति की ओर ले जाती है।

महायान बौद्ध धर्म में:

महायान परंपरा में, शून्यता का अर्थ और भी गहरा है। यहां, यह न केवल व्यक्तिगत आत्मा की शून्यता को इंगित करता है, बल्कि सभी धारणाओं और अवधारणाओं की शून्यता को भी इंगित करता है।

महायान दर्शन सिखाता है कि सभी चीजें अन्योन्याश्रित हैं और उनकी उत्पत्ति कारणों और परिस्थितियों के जटिल जाल से होती है। कोई भी वस्तु अपने आप में स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं है; इसका अस्तित्व अन्य सभी चीजों पर निर्भर करता है।

यह समझ हमें द्वैतवादी सोच से मुक्त करती है और हमें वास्तविकता की परस्पर जुड़ाव को देखने में मदद करती है।

निष्कर्ष:

शून्यता एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है जो बौद्ध दर्शन के केंद्र में स्थित है। यह हमें इस भ्रम से मुक्त करने का मार्ग प्रदान करती है कि हम और यह दुनिया स्थायी और अपरिवर्तनशील हैं। इस समझ के माध्यम से, हम दुःख से मुक्ति और वास्तविक शांति और मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।


Śūnyatā, translated most often as "emptiness", "vacuity", and sometimes "voidness", or "nothingness" is an Indian philosophical concept. In Hinduism, Jainism, Buddhism, and other philosophical strands, the concept has multiple meanings depending on its doctrinal context. It is either an ontological feature of reality, a meditative state, or a phenomenological analysis of experience.



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