Ashtavakra

अष्टावक्र

Ashtavakra

(Ancient sage in Hinduism)

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अष्टावक्र: आठ विकृतियों वाले ऋषि

अष्टावक्र का अर्थ है "आठ विकृतियों वाला"। यह नाम उन्हें जन्म से ही शरीर में आठ विकृतियां होने के कारण मिला था। वेदों और पुराणों में वर्णित एक पूजनीय ऋषि थे।

प्रारंभिक जीवन:

  • अष्टावक्र के नाना प्रसिद्ध वैदिक ऋषि अरुणि थे।
  • उनके माता-पिता दोनों ही अरुणि के आश्रम में वेदों का अध्ययन करते थे।
  • एक बार, गर्भावस्था के दौरान, अष्टावक्र ने अपनी माँ के गर्भ से ही वेदों में कुछ गलतियाँ सुनकर सुधार किया।
  • इससे क्रोधित होकर उनके पिता ने उन्हें श्राप दे दिया जिसके कारण उनका शरीर आठ स्थानों से विकृत हो गया।

ज्ञान और मुक्ति:

  • अष्टावक्र ने अपने नाना अरुणि से वेदों और आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा प्राप्त की।
  • वे कम उम्र में ही एक महान विद्वान और ऋषि बन गए।
  • उन्होंने राजा जनक से शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त की और उन्हें आत्मज्ञान प्रदान किया।

अष्टावक्र गीता:

  • अष्टावक्र को "अष्टावक्र गीता" या "अष्टावक्र संहिता" नामक ग्रंथ का रचयिता माना जाता है।
  • यह ग्रंथ ब्रह्म और आत्मा पर आधारित एक दार्शनिक ग्रंथ है।
  • इसमें आत्मज्ञान, मोक्ष, और ब्रह्म से एकाकार होने के विषय में गहन चर्चा की गई है।

महत्व:

  • अष्टावक्र को हिंदू धर्म में एक महान ऋषि और आध्यात्मिक गुरु के रूप में पूजा जाता है।
  • उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि शारीरिक विकलांगता आध्यात्मिक उन्नति में बाधा नहीं बन सकती।
  • "अष्टावक्र गीता" आज भी आध्यात्मिक साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रंथ मानी जाती है।

Ashtavakra is a revered Vedic sage in Hinduism. His maternal grandfather was the Vedic sage Aruni, his parents were both Vedic students at Aruni's school. Ashtavakra studied, became a sage and a celebrated character of the Hindu Itihasa epics and Puranas.



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