अतिथि देवो भव
Atithi Devo Bhava
(Hindu mantra)
Summary
अतिथिदेवो भव: आतिथ्य की भारतीय परंपरा
अतिथिदेवो भव (Atithidevo Bhava) संस्कृत का एक प्रसिद्ध वाक्य है जिसका अर्थ है "अतिथि भगवान के समान है।" यह वाक्य भारतीय संस्कृति, विशेष रूप से हिन्दू और बौद्ध धर्मों में आतिथ्य के महत्व को दर्शाता है। यह केवल एक कहावत नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है जो मेहमानों के प्रति सम्मान और आदर को सर्वोच्च स्थान देता है। यह सामान्य "नमस्ते" (आपके अंदर के ईश्वर को नमन) अभिवादन से भी आगे जाकर मेहमानों के साथ विशेष सम्मान और सेवा करने की परंपरा को रेखांकित करता है।
यह मंत्र तैत्तिरीय उपनिषद, शिक्षावल्ली I.11.2 से लिया गया है, जहाँ कहा गया है: "मातृदेवो भव, मित्रदेवो भव, पितृदेवो भव, पुत्रदेवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव।" इसका शाब्दिक अर्थ है: "जिसके लिए माता ईश्वर है, वैसा बनो; जिसके लिए मित्र ईश्वर है, वैसा बनो; जिसके लिए पिता ईश्वर है, वैसा बनो; जिसके लिए पुत्र ईश्वर है, वैसा बनो; जिसके लिए गुरु ईश्वर है, वैसा बनो; और जिसके लिए अतिथि ईश्वर है, वैसा बनो।"
यहाँ "मातृदेवः," "मित्रदेवः," "पितृदेवः," "पुत्रदेवः," "आचार्यदेवः," और "अतिथिदेवः" प्रत्येक एक शब्द है, और प्रत्येक बहुव्रीहि समस्तपद है। यह दिखाता है कि माँ, मित्र, पिता, पुत्र, गुरु और अतिथि सभी को ईश्वर के समान सम्मान दिया जाना चाहिए। यह केवल एक धार्मिक सिद्धांत ही नहीं है, बल्कि समाज में आपसी सम्बंधों और सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण आधार भी है। अतिथि का आदर करना, उनकी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना, उनकी भावनाओं का ध्यान रखना, और उन्हें सम्मानपूर्वक व्यवहार करना, भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी हमारे समाज में अपना महत्व बनाए हुए है। अतिथि सत्कार न केवल धार्मिक कर्तव्य है बल्कि मानवीय मूल्यों का भी प्रतीक है।