Tattva_(Jainism)

तत्त्व (जैन धर्म)

Tattva (Jainism)

(Fundamental elements in Jainism)

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जैन दर्शन के सात तत्त्व और उनका विस्तृत वर्णन (हिंदी में)

जैन दर्शन के अनुसार, सृष्टि सात तत्त्वों से बनी है जो वास्तविकता के मूलभूत सिद्धांत हैं। ये सात तत्त्व हैं :

१. जीव (आत्मा): यह चेतना का प्रतीक है, जो ज्ञान, दर्शन और सुख-दुःख का अनुभव करता है। जीव अनादि और अनंत है, यानी उसका न तो आदि है और न ही अंत।

  • विस्तार: जैन दर्शन में जीव को दो भागों में बाँटा गया है - मुक्त जीव (मुक्त आत्मा) और बद्ध जीव (बंधन में बंधी आत्मा)। मुक्त जीव सभी कर्मों से मुक्त होते हैं और सिद्धालय में निवास करते हैं। बद्ध जीव कर्मों से बंधे होते हैं और जन्म-मरण के चक्र में फंसे रहते हैं।

२. अजीव (जड़): यह वह तत्त्व है जिसमें चेतना नहीं होती। इसमें पुद्गल (पदार्थ), धर्म, अधर्म, काल और आकाश शामिल हैं।

  • विस्तार:
    • पुद्गल: यह भौतिक पदार्थ है जिससे सभी वस्तुएँ बनी हैं।
    • धर्म: यह गति का सिद्धांत है जो आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाता है।
    • अधर्म: यह गति का सिद्धांत है जो आत्मा को बंधन की ओर ले जाता है।
    • काल: यह समय का प्रतीक है जो निरंतर गतिशील है।
    • आकाश: यह वह स्थान है जहाँ जीव और अजीव रहते हैं।

३. आस्रव: यह शुभ और अशुभ कर्मों का आत्मा में प्रवेश है।

  • विस्तार: हमारे कर्म, विचार, और भावनाएँ आस्रव का कारण बनते हैं। क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या आदि अशुभ आस्रव हैं जबकि दया, क्षमा, प्रेम आदि शुभ आस्रव हैं।

४. बंध: यह कर्मों का आत्मा से जुड़ाव है।

  • विस्तार: आस्रव के कारण आत्मा में कर्म चिपक जाते हैं, इसे ही बंध कहते हैं।

५. संवर: यह नए कर्मों के आत्मा में प्रवेश को रोकना है।

  • विस्तार: संयम, तपस्या, और ध्यान के माध्यम से हम संवर कर सकते हैं।

६. निर्जरा: यह आत्मा से कर्मों का नाश है।

  • विस्तार: तपस्या, ध्यान, और सात्विक जीवन जीने से निर्जरा होती है।

७. मोक्ष: यह आत्मा की कर्म बंधन से पूर्ण मुक्ति है।

  • विस्तार: जब आत्मा सभी कर्मों से मुक्त हो जाती है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष के बाद आत्मा को पूर्ण ज्ञान, आनंद और शक्ति की प्राप्ति होती है।

श्वेतांबर (स्थानाकवासी) संप्रदाय के अनुसार, दो और तत्त्व हैं:

८. पुण्य: यह शुभ कर्मों का फल है जो सुख और समृद्धि प्रदान करता है।

९. पाप: यह अशुभ कर्मों का फल है जो दुःख और पीड़ा प्रदान करता है।

इन सात (या नौ) तत्त्वों का ज्ञान आत्मा की मुक्ति के लिए आवश्यक माना जाता है।


Jain philosophy explains that seven tattva constitute reality. These are:—jīva- the soul which is characterized by consciousness ajīva- the non-soul āsrava (influx)- inflow of auspicious and evil karmic matter into the soul. bandha (bondage)- mutual intermingling of the soul and karmas. samvara (stoppage)- obstruction of the inflow of karmic matter into the soul. nirjara - separation or falling-off of parts of karmic matter from the soul. mokṣha (liberation)- complete annihilation of all karmic matter.



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