
मध्यमकालंकार
Madhyamakālaṃkāra
(8th-century Tibetan Buddhist text)
Summary
माध्यमाकालंकार: बौद्ध दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ
"माध्यमाकालंकार" आठवीं शताब्दी का एक बौद्ध ग्रन्थ है, जिसे मूल रूप से संस्कृत भाषा में शांतरक्षित (७२५-७८८) ने रचा था। हालांकि, इसका संस्कृत संस्करण अब उपलब्ध नहीं है और यह ग्रन्थ केवल तिब्बती भाषा में ही मौजूद है।
शांतरक्षित भारतीय बौद्ध धर्म के प्रख्यात विद्वान और दार्शनिक थे, जिन्होंने योगाचार-माध्यमिक नामक बौद्ध दर्शन की एक महत्वपूर्ण शाखा को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। योगाचार-माध्यमिक दर्शन, योगाचार और माध्यमिक इन दो अलग-अलग बौद्ध दर्शनों के मूल सिद्धांतों का समन्वय करता है।
माध्यमाकालंकार इसी दर्शन की व्याख्या करता है और बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों, जैसे की शून्यता (emptiness) और प्रतीत्यसमुत्पाद (dependent origination) को स्पष्ट करता है।
तिब्बती भाषा में इस ग्रन्थ का अनुवाद सुरेन्द्रबोधि और ज्ञानसूत्र नामक दो विद्वानों ने किया था। यह अनुवाद तिब्बती बौद्ध धर्म के अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और आज भी इसका अध्ययन व्यापक रूप से किया जाता है।
मुख्य विशेषताएँ:
- योगाचार-माध्यमिक दर्शन की व्याख्या
- शून्यता और प्रतीत्यसमुत्पाद जैसे महत्वपूर्ण बौद्ध सिद्धांतों पर प्रकाश
- शांतरक्षित के गहन दार्शनिक विचारों का संग्रह
- तिब्बती बौद्ध धर्म के अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान
निष्कर्ष:
माध्यमाकालंकार एक महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रन्थ है जो योगाचार-माध्यमिक दर्शन को समझने के लिए आवश्यक है। यह ग्रन्थ बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को गहराई से समझने में मदद करता है और आज भी प्रासंगिक है।