Mindstream

माइंडस्ट्रीम

Mindstream

(Buddhist concept of continuity of mind)

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चित्त-संतति: मन की अविरल धारा (Mindstream in Hindi)

बौद्ध दर्शन में, चित्त-संतति शब्द का प्रयोग मन की उस अविरल धारा को दर्शाने के लिए किया जाता है जो क्षण-प्रतिक्षण चलती रहती है। यह धारा इंद्रियों द्वारा ग्रहण की गई सूचनाओं (इंद्रिय-विज्ञान) और मानसिक क्रियाओं (चेतसिक) का एक निरंतर प्रवाह होती है। इसे संतति इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह एक जीवन से दूसरे जीवन तक अनवरत रूप से बहती रहती है, ठीक उसी तरह जैसे नदी का पानी निरंतर बहता रहता है।

चित्त-संतति की तुलना एक फिल्म रील से की जा सकती है, जहाँ हर एक फ्रेम किसी एक क्षण के अनुभव को दर्शाता है। फिल्म की तरह ही, मन की यह धारा भी अलग-अलग क्षणों को जोड़कर एक सतत प्रवाह का निर्माण करती है।

चित्त-संतति के कुछ महत्वपूर्ण पहलु इस प्रकार हैं:

  • क्षणिकता (Momentary): प्रत्येक मानसिक अवस्था या अनुभव क्षणिक होता है और तुरंत बदल जाता है।
  • अनित्यता (Impermanence): चित्त-संतति निरंतर परिवर्तनशील होती है, इसमें कोई भी चीज स्थिर या स्थायी नहीं होती है।
  • अनत्ता (Non-self): चित्त-संतति में कोई भी स्थायी 'मैं' या 'आत्मा' नहीं है।

चित्त-संतति की अवधारणा बौद्ध धर्म की पुनर्जन्म की अवधारणा से जुड़ी हुई है। जब एक व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसकी चित्त-संतति समाप्त नहीं होती है, बल्कि एक नए जन्म में प्रवेश करती है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक व्यक्ति निर्वाण प्राप्त नहीं कर लेता, जो दुखों से मुक्ति की अवस्था है।

संक्षेप में, चित्त-संतति मन की वह अविरल धारा है जो क्षण-प्रतिक्षण चलती रहती है और एक जीवन से दूसरे जीवन तक अनवरत रूप से बहती रहती है।


Mindstream (citta-santāna) in Buddhist philosophy is the moment-to-moment continuum of sense impressions and mental phenomena, which is also described as continuing from one life to another.



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