
होनेन
Hōnen
(12th-century Japanese Buddhist monk; founder of the Jōdo-shū sect)
Summary
होनें: जापानी शुद्ध भूमि बौद्ध धर्म के प्रणेता
होनें (१३ मई (७ अप्रैल), ११३३ - २९ फरवरी, १२१२), जिन्हें जापानी में 法然 लिखते हैं, एक महान धार्मिक सुधारक थे जिन्होंने जापानी शुद्ध भूमि बौद्ध धर्म की पहली स्वतंत्र शाखा, जोदो-शू (浄土宗, "शुद्ध भूमि संप्रदाय") की स्थापना की। उन्हें सातवें जोदो शिंशु पितृपुरुष भी माना जाता है।
प्रारंभिक जीवन और असंतोष:
होनें ने कम उम्र में ही तेंदई बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली थी। हालाँकि, समय के साथ उनका मन तेंदई शिक्षाओं से उचटने लगा। उन्हें ऐसा मार्ग चाहिए था जिसका पालन कोई भी कर सके, खासकर धर्म के पतन के युग (मप्पो) में।
शांडो की खोज और नेम्बुत्सु:
चीनी बौद्ध भिक्षु शांडो के लेखों को पढ़कर होनें को नया मार्ग मिला। शांडो ने अमिताभ बुद्ध की शुद्ध भूमि में पुनर्जन्म की शिक्षा दी थी, जिसे नेम्बुत्सु (संस्कृत: नियनफो) या "बुद्ध के नाम का जाप" करके प्राप्त किया जा सकता है। होनें ने इस शिक्षा को अपनाया और इसका प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया।
अनुयायी, आलोचक और निर्वासन:
होनें के क्रांतिकारी विचारों ने बहुत से लोगों को आकर्षित किया और उनके अनुयायियों का एक बड़ा समुदाय बन गया। लेकिन उनके विरोधियों की भी कमी नहीं थी। पारंपरिक बौद्ध समुदायों ने उनके विचारों का विरोध किया और सम्राट त्सुचिमिकाडो पर दबाव डाला।
सन् १२०७ में होनें के दो शिष्यों द्वारा किए गए एक अपराध के बाद, और प्रभावशाली बौद्ध समुदायों के दबाव में, सम्राट ने होनें और उनके अनुयायियों को क्योटो से निर्वासित कर दिया।
वापसी और मृत्यु:
कुछ समय बाद, होनें को क्षमा कर दिया गया और उन्हें क्योटो लौटने की अनुमति मिल गई। हालाँकि, वे ज्यादा दिन जीवित नहीं रहे और १२१२ में उनकी मृत्यु हो गई।
होनें की विरासत:
होनें ने जापानी बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया। उनके द्वारा स्थापित जोदो-शू संप्रदाय आज भी जापान के सबसे बड़े और प्रभावशाली बौद्ध संप्रदायों में से एक है। नेम्बुत्सु का अभ्यास, जिसे होनें ने लोकप्रिय बनाया, आज भी लाखों लोगों द्वारा किया जाता है।