
मैत्री
Maitrī
(Buddhist term meaning "loving-kindness")
Summary
मैत्री: प्रेम, करुणा और सद्भावना का मार्ग (Maitri: The path of love, compassion, and goodwill)
मैत्री (संस्कृत: मैत्री, पालि: मेत्ता) का अर्थ है परोपकार, प्रेमपूर्ण दया, मित्रता, सद्भावना, और दूसरों के प्रति सक्रिय रुचि। यह थेरवाद बौद्ध धर्म के चार उदात्त राज्यों (ब्रह्मविहारों) में से पहला और दस पारमिताओं में से एक है।
मैत्री भावना का विकास (मेत्ता भावना) बौद्ध ध्यान का एक लोकप्रिय रूप है। यह ब्रह्मविहार (दिव्य निवास) ध्यान में चार अप्रमाण्य (अपरिमेय) गुणों का एक हिस्सा है। "करुणा ध्यान" के रूप में मेत्ता का अभ्यास अक्सर एशिया में प्रसारण जप द्वारा किया जाता है, जहाँ भिक्षु आम लोगों के लिए मंत्रोच्चार करते हैं।
मेत्ता की करुणा और सार्वभौमिक प्रेम-दया की अवधारणा पर बौद्ध धर्म के मेट्टा सुत्त में चर्चा की गई है, और यह हिंदू धर्म और जैन धर्म के प्राचीन और मध्ययुगीन ग्रंथों में मेत्ता या मैत्री के रूप में भी पाई जाती है।
मरीजों पर प्रेम-दया ध्यान दृष्टिकोण की क्षमता पर किए गए छोटे नमूना अध्ययनों से संभावित लाभों का सुझाव मिलता है। हालाँकि, सहकर्मी समीक्षा इन अध्ययनों की गुणवत्ता और नमूना आकार पर सवाल उठाते हैं।
विस्तार से:
- ब्रह्मविहार (Brahmaviharas): बौद्ध धर्म में चार उदात्त मानसिक अवस्थाएँ हैं: मैत्री (प्रेमपूर्ण दया), करुणा (दुख के प्रति संवेदनशीलता), मुदिता (दूसरों की खुशी में आनंद), और उपेक्षा (समभाव)।
- पारमिता (Paramis): थेरवाद बौद्ध धर्म में दस सिद्धियाँ हैं जो निर्वाण प्राप्ति के लिए आवश्यक मानी जाती हैं।
- मेत्ता सुत्त (Metta Sutta): बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण पाठ जो मैत्री भावना को विकसित करने के तरीके सिखाता है।
- हिंदू धर्म और जैन धर्म में मैत्री: इन धर्मों में भी मैत्री को एक महत्वपूर्ण गुण माना जाता है और इसके विकास पर बल दिया जाता है।
संक्षेप में, मैत्री एक सार्वभौमिक प्रेम, करुणा और सद्भावना की भावना है जो सभी प्राणियों के प्रति विकसित की जा सकती है। यह बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है और इसे आंतरिक शांति और खुशी प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।