Causes_of_karma_in_Jainism

जैन धर्म में कर्म के कारण

Causes of karma in Jainism

(One of the seven truths or fundamental principles (tattva) of Jainism)

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Jainism में कर्म का सिद्धांत: विस्तृत विवरण (Hindi)

जैन धर्म में, कर्म का सिद्धांत सात तत्वों पर आधारित है जो मानव जीवन की दुविधाओं को समझाते हैं। इन सात तत्वों में से चार - आस्रव, बंध, संवर, और निर्जरा - कर्म के चक्र से सीधे जुड़े हैं।

आइए इन चार तत्वों को विस्तार से समझें:

१. आस्रव (आगमन):

  • आस्रव का अर्थ है कर्मों का आत्मा में प्रवेश करना।
  • यह हमारे विचारों, भावनाओं और क्रियाओं के कारण होता है।
  • जब हम राग (लालच), द्वेष (नफरत), क्रोध (गुस्सा), मोह (भ्रम) आदि जैसी भावनाओं में बह जाते हैं, तो हमारे कर्मों का आत्मा से बंधन होता है।

२. बंध (बंधन):

  • बंध का अर्थ है कर्मों का आत्मा से जुड़ना या चिपकना।
  • आस्रव के माध्यम से आत्मा में प्रवेश करने वाले कर्म, बंध के कारण आत्मा से चिपक जाते हैं।
  • यह बंधन कर्मों की प्रकृति और तीव्रता पर निर्भर करता है।

३. संवर (निरोध):

  • संवर का अर्थ है कर्मों के आगमन को रोकना।
  • यह आत्म-नियंत्रण, ध्यान, और जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करके प्राप्त किया जा सकता है।
  • संवर द्वारा हम नए कर्मों को आत्मा से जुड़ने से रोक सकते हैं।

४. निर्जरा (मोक्ष):

  • निर्जरा का अर्थ है आत्मा से कर्मों का पूर्ण नाश।
  • यह तपस्या, ज्ञान, और सम्यक दर्शन के द्वारा संभव है।
  • निर्जरा के बाद आत्मा कर्म के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करती है।

संक्षेप में: जैन धर्म में कर्म का सिद्धांत हमें बताता है कि हमारे कर्म हमारे आत्मा को बांधते हैं। आस्रव और बंध द्वारा कर्म आत्मा से जुड़ते हैं, जबकि संवर और निर्जरा द्वारा हम इस बंधन से मुक्त हो सकते हैं।


The karmic process in Jainism is based on seven truths or fundamental principles (tattva) of Jainism which explain the human predicament. Out of those, four—influx (āsrava), bondage (bandha), stoppage (saṃvara) and release (nirjarā)—pertain to the karmic process. Karma gets bound to the soul on account of two processes:āsrava – Influx of karmas, and bandha – bondage or sticking of karmas to consciousness



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