
असरवा
Asrava
(One of the seven fundamental elements in Jainism.)
Summary
आश्रव: जैन दर्शन में कर्म बंधन का कारण
"आश्रव" शब्द का अर्थ है "प्रवाह" या "आगमन"। जैन दर्शन में, यह एक महत्वपूर्ण तत्व है जो कर्म के बंधन को समझने में मदद करता है। यह हमारे शरीर और मन के उन प्रभावों को दर्शाता है जो आत्मा को कर्म बांधने के लिए प्रेरित करते हैं।
जैन धर्म में कर्म प्रक्रिया को सात सत्यों या मूलभूत सिद्धांतों (तत्वों) के आधार पर समझाया गया है। इन सात तत्वों में से चार - आश्रव, बंधन, संवर और निर्जरा - कर्म प्रक्रिया से सीधे जुड़े हैं।
आइए आश्रव को और विस्तार से समझते हैं:
- परिभाषा: आश्रव वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्म के सूक्ष्म कण हमारे आत्मा से जुड़ते हैं। यह हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों के कारण होता है।
- कारण: आश्रव के मुख्य कारण हैं:
- मिथ्यात्व: सही ज्ञान का अभाव।
- अविरति: इंद्रियों पर नियंत्रण का अभाव।
- प्रमाद: लापरवाही और आध्यात्मिक उदासीनता।
- कषाय: क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे दूषित भाव।
- प्रकार: आश्रव मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
- द्रव्य आश्रव: कर्म के सूक्ष्म कणों का आत्मा से वास्तविक जुड़ाव।
- भाव आश्रव: कर्म बंधन के लिए मानसिक तैयारी।
आश्रव को पानी के बर्तन में छेद से आने वाले पानी के प्रवाह के समान समझा जा सकता है। जैसे छेद से पानी अंदर आता रहता है, वैसे ही आश्रव कर्म के बंधन को बढ़ाता रहता है।
जैन धर्म में आश्रव से मुक्ति पाना आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। संवर और निर्जरा जैसे तत्वों के माध्यम से आत्मा को आश्रव से मुक्त किया जा सकता है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।