Samvara

संवर

Samvara

(One of the seven fundamental elements in Jainism.)

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संवर (Samvara): जैन दर्शन में आत्मा की मुक्ति का द्वार

जैन दर्शन के अनुसार, संवर एक तत्त्व है, अर्थात यह विश्व की एक मौलिक सच्चाई है। इसका अर्थ है रोक - आत्मा में भौतिक कर्मों के प्रवाह को रोकना। जैन धर्म में, कर्म प्रक्रिया सात सत्यों या मौलिक सिद्धांतों (तत्त्व) पर आधारित है जो मानव की दुर्दशा की व्याख्या करते हैं। इन सात तत्त्वों में से, चार - आस्रव, बंध, संवर और निर्जरा - कर्म प्रक्रिया से संबंधित हैं।

संवर का अर्थ है आवश्यक सावधानियां बरतकर नए कर्मों के बंधन को रोकना। यह जैन धर्म में आध्यात्मिक उन्नति का एक महत्वपूर्ण चरण है क्योंकि यह आत्मा को और अधिक कर्म बंधन से मुक्त करने में मदद करता है।

संवर को प्राप्त करने के तरीके:

संवर को प्राप्त करने के लिए जैन धर्म में निम्नलिखित तरीके बताए गए हैं:

  • सम्यक दर्शन: सही विश्वास और जैन दर्शन की सही समझ।
  • सम्यक ज्ञान: जैन धर्म के सिद्धांतों का सही ज्ञान।
  • सम्यक चारित्र: जैन नैतिकता के अनुसार सही आचरण।

संवर के लाभ:

संवर के द्वारा व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं:

  • नए कर्म बंधन से मुक्ति: संवर के द्वारा व्यक्ति नए कर्मों को बांधने से बच जाता है।
  • आत्मिक उन्नति: संवर के कारण व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से उन्नत होता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: अंततः, संवर मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है।

संक्षेप में, संवर जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो आत्मा को कर्म बंधन से मुक्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है।


Samvara (saṃvara) is one of the tattva or the fundamental reality of the world as per the Jain philosophy. It means stoppage—the stoppage of the influx of the material karmas into the soul consciousness. The karmic process in Jainism is based on seven truths or fundamental principles (tattva) of Jainism which explain the human predicament. Out of the seven, the four influxes (āsrava), bondage (bandha), stoppage (saṃvara) and release (nirjarā)—pertain to the karmic process.



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