Parasparopagraho_Jivanam

परस्परोपग्रहो जीवनम्

Parasparopagraho Jivanam

(Jain aphorism from the Tattvārtha Sūtra)

Summary
Info
Image
Detail

Summary

"परस्परोपग्रहो जीवानाम्" - जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण सूत्र

"परस्परोपग्रहो जीवानाम्" (Parasparopagraho Jīvānām) जैन धर्म के महत्वपूर्ण सूत्रों में से एक है, जो तत्वार्थ सूत्र के 5.21 अध्याय में मिलता है। इस सूत्र का अर्थ है "आत्माएं एक-दूसरे की सेवा करती हैं"। इसे इस प्रकार भी अनुवाद किया जा सकता है, "सभी प्राणियों का जीवन आपसी सहयोग और परस्पर निर्भरता से जुड़ा हुआ है"। ये दोनों अनुवाद लगभग समान अर्थ रखते हैं, क्योंकि जैन धर्म मानता है कि प्रत्येक जीवित प्राणी, चाहे वह पौधा हो, जीवाणु हो या मनुष्य, में आत्मा होती है, और यह अवधारणा जैन धर्म का आधार है।

विस्तार से समझने के लिए:

  • "परस्परोपग्रहो": इस शब्द का अर्थ है "आपसी सहयोग" या "एक-दूसरे के लिए सहायक होना"। यह दर्शाता है कि सभी जीवित प्राणी, चाहे वे कितने भी भिन्न हों, एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
  • "जीवानाम्": इस शब्द का अर्थ है "सभी जीवित प्राणी"। जैन दर्शन में, "जीव" शब्द केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी जीवित प्राणियों, जैसे पौधों, जानवरों, कीड़ों, और यहां तक ​​कि सूक्ष्म जीवों को भी शामिल करता है।

इस सूत्र का महत्व:

  • अहिंसा का आधार: "परस्परोपग्रहो जीवानाम्" सूत्र जैन धर्म के मूल सिद्धांत, अहिंसा, का आधार है। यह सूत्र हमें सिखाता है कि सभी जीवित प्राणियों को सम्मान और सहानुभूति के साथ देखना चाहिए, क्योंकि हम सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
  • जीवन की एकता: यह सूत्र सभी जीवित प्राणियों की एकता को दर्शाता है। हम सभी एक ही ब्रह्मांड के भाग हैं, और हम सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
  • पारस्परिक सेवा: इस सूत्र का मुख्य संदेश है कि हमें एक-दूसरे की सेवा करनी चाहिए। यह सेवा केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं बल्कि सभी जीवित प्राणियों के लिए है।

निष्कर्ष:

"परस्परोपग्रहो जीवानाम्" जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण सूत्र है जो हमें सभी प्राणियों के जीवन के महत्व, आपसी सहयोग और सेवा की आवश्यकता, और अहिंसा के मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन करता है।


Parasparopagraho Jīvānām is a Jain aphorism from the Tattvārtha Sūtra [5.21]. It is translated as "Souls render service to one another". It is also translated as, "All life is bound together by mutual support and interdependence." These translations are virtually the same, because Jains believe that every living being, from a plant or a bacterium to human, has a soul and the concept forms the very basis of Jainism.



...
...
...
...
...
An unhandled error has occurred. Reload 🗙