Haribhadra_(Jain_philosopher)

हरिभद्र (जैन दार्शनिक)

Haribhadra (Jain philosopher)

(Jain writer)

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आचार्य हरिभद्र सूरी: एक विद्वान जैन मुनि

आचार्य हरिभद्र सूरी एक श्वेतांबर जैन मुनि, दार्शनिक, धर्मग्रंथकार और लेखक थे। उनके जन्म की तिथि के बारे में अलग-अलग और विरोधाभासी जानकारी उपलब्ध है। परंपरा के अनुसार, उनका जीवनकाल 459-529 ईस्वी माना जाता है। हालांकि, 1919 में, जैन मुनि जिनविजय ने बताया कि धर्मकीर्ति से उनके परिचित होने के कारण, उनके जन्म की तिथि 650 ईस्वी के बाद की होनी चाहिए।

अपने लेखन में, हरिभद्र ने खुद को विद्याधर कुल के जिनभद्र और जिनदत्त के शिष्य के रूप में बताया है। उनके जीवन के बारे में कई विरोधाभासी विवरण मौजूद हैं। उन्होंने योग पर कई ग्रंथ लिखे, जैसे योगदृष्टिसमुच्चय, और तुलनात्मक धर्म पर भी लिखा, जिसमें उन्होंने हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों के सिद्धांतों का विश्लेषण किया।

हरिभद्र सूरी के मुख्य कार्य:

  • योगदृष्टिसमुच्चय: यह ग्रंथ योग दर्शन के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से बताता है।
  • अभिधर्मकथाविनिश्चय: यह ग्रंथ जैन धर्म के अभिधर्म के सिद्धांतों को समझाता है।
  • शास्त्रार्थचिंतामणि: इस ग्रंथ में, हरिभद्र ने विभिन्न धार्मिक सिद्धांतों की तुलना और विश्लेषण किया है।

हरिभद्र सूरी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें:

  • वे एक प्रख्यात दार्शनिक और धर्मग्रंथकार थे जिन्होंने जैन दर्शन को समृद्ध किया।
  • उन्होंने योग और तुलनात्मक धर्म पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।
  • उनके काम जैन धर्म के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • उनकी शिक्षाओं का जैन धर्म पर गहरा प्रभाव पड़ा।

निष्कर्ष:

आचार्य हरिभद्र सूरी एक महत्वपूर्ण जैन मुनि, दार्शनिक और लेखक थे जिन्होंने जैन दर्शन और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी शिक्षाओं और ग्रंथों का आज भी अध्ययन किया जाता है और जैन धर्म के लिए उनके योगदान को सराहा जाता है।


Acharya Haribhadra Suri was a Śvetāmbara mendicant Jain leader, philosopher, doxographer, and author. There are multiple contradictory dates assigned to his birth. According to tradition, he lived c. 459–529 CE. However, in 1919, a Jain monk named Jinvijay pointed out that given his familiarity with Dharmakirti, a more likely choice would be sometime after 650. In his writings, Haribhadra identifies himself as a student of Jinabhadra and Jinadatta of the Vidyadhara Kula. There are several, somewhat contradictory, accounts of his life. He wrote several books on Yoga, such as the Yogadṛṣṭisamuccaya and on comparative religion, outlining and analyzing the theories of Hindus, Buddhists and Jains.



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