Yashovijaya

याशोबियाया

Yashovijaya

(17th-century Jain monk)

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यशोविजय: एक प्रसिद्ध जैन दार्शनिक और तर्कशास्त्री

सत्रहवीं शताब्दी के जैन दार्शनिक-साधु यशोविजय (IAST: Yaśovijaya, 1624–1688), एक जाने-माने भारतीय दार्शनिक और तर्कशास्त्री थे। वे एक विचारक, बहुमुखी लेखक और टीकाकार थे, जिनका जैन धर्म पर गहरा और स्थायी प्रभाव था। वे जैन साधु हीराविजय (श्वेतांबर जैन के ताप गच्छ परंपरा के) की वंशानुगत में मुनि नयविजय के शिष्य थे, जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर को मांस खाने से रोकने में प्रभाव डाला था। उन्हें यशोविजयजी के नाम से भी जाना जाता है, और "महामहोपाध्याय", "उपाध्याय" या "गणि" जैसे सम्मानजनक उपाधियों से भी।

यशोविजय की प्रमुख विशेषताएं:

  • दार्शनिक और तर्कशास्त्री: वे जैन दर्शन और तर्कशास्त्र में पारंगत थे, और उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की।
  • प्रभावशाली लेखक: उन्होंने विभिन्न विषयों पर कई ग्रंथ लिखे, जिनमें दर्शन, तर्कशास्त्र, व्याकरण और साहित्य शामिल हैं।
  • टीकाकार: उन्होंने जैन धर्म के कई महत्वपूर्ण ग्रंथों पर टीकाएं लिखीं, जिससे इन ग्रंथों की समझ को व्यापक बनाया गया।
  • अकबर पर प्रभाव: वे मुनि नयविजय के शिष्य थे, जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर को मांस खाने से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • जैन धर्म के प्रचारक: वे जैन धर्म के प्रचारक और प्रसारक थे, और उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को विभिन्न तरीकों से लोगों तक पहुंचाया।

यशोविजय के जीवन और कार्यों का अध्ययन करने से हमें जैन धर्म और भारतीय दर्शन के बारे में गहन जानकारी प्राप्त होती है। उनका योगदान जैन धर्म के इतिहास में अद्वितीय है और आज भी उनके लेखन और विचारों का अध्ययन किया जाता है।


Yashovijaya, a seventeenth-century Jain philosopher-monk, was a notable Indian philosopher and logician. He was a thinker, prolific writer and commentator who had a strong and lasting influence on Jainism. He was a disciple of Muni Nayavijaya in the lineage of Jain monk Hiravijaya who influenced the Mughal Emperor Akbar to give up eating meat. He is also known as Yashovijayji with honorifics like Mahopadhyaya or Upadhyaya or Gani.



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