
अभिधम्म साहित्य
Abhidharma
(Buddhist traditions and texts dating from the 3rd century BCE onwards)
Summary
अभिधर्म: बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन
अभिधर्म बौद्ध ग्रंथों का एक संग्रह है जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर आज तक उपलब्ध हैं। ये ग्रंथ बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों का विस्तृत और विद्वत्तापूर्ण प्रस्तुतीकरण करते हैं जो कि बौद्ध धर्म के प्रारंभिक ग्रंथों और टीकाओं में पाए जाते हैं।
अभिधर्म का अर्थ:
- ग्रंथों का संग्रह: यह शब्द उन विशिष्ट बौद्ध ग्रंथों को दर्शाता है जो बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं।
- विश्लेषण की पद्धति: यह शब्द उस विशिष्ट पद्धति को भी दर्शाता है जिसका उपयोग इन ग्रंथों में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को समझाने के लिए किया जाता है।
- ज्ञान का क्षेत्र: यह शब्द उस ज्ञान के क्षेत्र को भी दर्शाता है जिसका अध्ययन इन ग्रंथों में किया जाता है।
भिक्षु बोधि के अनुसार, अभिधर्म बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का "एक अमूर्त और अत्यधिक तकनीकी व्यवस्थितिकरण" है, जो "एक साथ दर्शन, मनोविज्ञान और नैतिकता है, जो सभी मुक्ति के कार्यक्रम के ढांचे में एकीकृत हैं।"
पीटर हार्वे के अनुसार, अभिधर्म पद्धति "बोलचाल की भाषा की अशुद्धियों से बचने का प्रयास करती है, जैसा कि कभी-कभी सूत्रों में पाया जाता है, और हर चीज को मनो-दार्शनिक रूप से सटीक भाषा में बताती है।" इस अर्थ में, यह "परम वास्तविकता" (परमार्थ-सत्य) के बौद्ध दृष्टिकोण को सर्वोत्तम रूप से व्यक्त करने का प्रयास है।
अभिधर्म साहित्य के प्रकार:
- प्रारंभिक अभिधर्म ग्रंथ: ये ग्रंथ, जैसे कि "अभिधम्म पिटक", दार्शनिक ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि मुख्य रूप से प्रारंभिक बौद्ध धर्म के सिद्धांतों की सूचियों और उनके स्पष्टीकरणों का सारांश और व्याख्या हैं।
- बाद के अभिधर्म ग्रंथ: ये ग्रंथ या तो बड़े ग्रंथ (शास्त्र) के रूप में, टीकाओं (अट्ठकथा) के रूप में, या छोटे परिचयात्मक नियमावली के रूप में लिखे गए थे। ये अधिक विकसित दार्शनिक रचनाएँ हैं जिनमें कई नवाचार और सिद्धांत शामिल हैं जो विहित अभिधर्म में नहीं पाए जाते हैं।
महत्व:
आज भी, थेरवाद, महायान और वज्रयान - बौद्ध धर्म के सभी प्रमुख संप्रदायों में अभिधर्म एक महत्वपूर्ण अध्ययन क्षेत्र बना हुआ है। यह बौद्ध धर्म की गहन समझ प्रदान करता है और मुक्ति के मार्ग पर चलने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है।