पर्यूषण पर्व
Paryushana
(Most important festivals for the Jains)
Summary
Paryushana: जैन धर्म का पावन पर्व
पर्युषण जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है जो हर साल अगस्त या सितंबर में मनाया जाता है। यह हिंदी कैलेंडर के भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष में आता है।
पर्युषण का अर्थ:
"पर्युषण" शब्द का अर्थ है "निकट रहना" या "आत्मा के निकट रहना"। यह आठ दिनों तक चलने वाला पर्व आत्म-चिंतन, आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए समर्पित होता है।
पर्युषण के दौरान:
- उपवास: पर्युषण के दौरान, जैन धर्मावलम्बी अपनी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाने के लिए उपवास रखते हैं। उपवास कई प्रकार के होते हैं - कुछ लोग पूरे दिन कुछ नहीं खाते, तो कुछ लोग केवल एक समय भोजन करते हैं या फिर कुछ खास चीजें ही खाते हैं।
- प्रार्थना और ध्यान: प्रार्थना और ध्यान, पर्यूषण के अभिन्न अंग हैं। लोग मंदिरों में जाते हैं, धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं और ध्यान में समय बिताते हैं।
- पंच महाव्रतों का पालन: जैन धर्म में पाँच महाव्रतों का पालन करना आवश्यक माना जाता है - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। पर्युषण के दौरान, इन व्रतों का पालन और भी ज़्यादा सख्ती से किया जाता है।
- क्षमा याचना: पर्यूषण का समापन क्षमा याचना के साथ होता है। इस दिन, सभी लोग एक-दूसरे से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं और नए सिरे से शुरुआत करते हैं।
पर्युषण का महत्व:
पर्यूषण जैन धर्मावलंबियों के लिए आत्म-चिंतन और आध्यात्मिक उन्नति का समय होता है। यह उन्हें सांसारिक मोह-माया से दूर रहकर अपने आत्मा से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।
Samvatsari (क्षमावाणी):
पर्युषण के आठवें और अंतिम दिन को संवत्सरी या क्षमावाणी कहते हैं। इस दिन जैन धर्मावलम्बी एक-दूसरे से "मिच्छा मी दुक्कडम्" कहकर पिछले वर्ष में जाने-अनजाने हुई किसी भी गलती या चूक के लिए क्षमा मांगते हैं।
निष्कर्ष:
पर्युषण जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो आत्म-शुद्धि, क्षमा और आध्यात्मिक जागृति का संदेश देता है।