
तीर्थ (जैन धर्म)
Tirtha (Jainism)
(Sanskrit term denoting Jain pilgrimage sites)
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तीर्थ: जैन धर्म में पवित्र स्थल और संघ के स्तंभ
जैन धर्म में, "तीर्थ" शब्द का अर्थ है "जल का वह उथला भाग जिसे आसानी से पार किया जा सके"। यह शब्द दो महत्वपूर्ण अर्थों में प्रयोग होता है:
- तीर्थयात्रा स्थल: जैन धर्म में, तीर्थ वे पवित्र स्थान हैं जहाँ तीर्थयात्री धार्मिक महत्व के कारण जाते हैं।
- संघ के चार अंग: तीर्थ, जैन संघ (समुदाय) के चार प्रमुख अंगों - साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका - का भी प्रतीक है।
"तीर्थ" शब्द का गहरा अर्थ है। जैसे नदी के उथले भाग से हम आसानी से पार हो जाते हैं, वैसे ही तीर्थ स्थल या तीर्थंकरों का जीवन हमें सांसारिक मोह-माया से मुक्ति (मोक्ष) की ओर ले जाने की प्रेरणा देते हैं।
तीर्थ स्थल:
- भारत भर में अनेक जैन तीर्थ स्थल हैं।
- इन स्थलों पर अक्सर कई मंदिर, तीर्थयात्रियों के लिए धर्मशालाएँ और साधु-साध्वियों एवं विद्वानों के निवास स्थान होते हैं।
- तीर्थ स्थलों पर जाने से भक्तों को धार्मिक प्रेरणा मिलती है, वे जैन धर्म के सिद्धांतों का चिंतन करते हैं और अपने जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करते हैं।
संघ के तीर्थ:
- साधु और साध्वी संयम का पालन करते हुए मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं।
- श्रावक और श्राविका गृहस्थ जीवन जीते हुए जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करते हैं।
यह चारों मिलकर जैन संघ का निर्माण करते हैं और एक दूसरे को धार्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता करते हैं।
In Jainism, a tīrtha is used to refer both to pilgrimage sites as well as to the four sections of the sangha. A tirtha provides the inspiration to enable one to cross over from worldly engagement to the side of moksha.