
विनय
Vinaya
(Buddhist monastic rules)
Summary
बौद्ध धर्म में विनय: सरल हिंदी में व्याख्या
विनय बौद्ध धर्म के पवित्र ग्रंथ त्रिपिटक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह ग्रंथ बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए आचरण के नियमों और उपदेशों का संग्रह है, जो बौद्ध संघ (समान विचारधारा वाले श्रमणों का समुदाय) का हिस्सा बनते हैं।
आरंभिक विकास: बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के तेरह साल बाद इन उपदेशों को पहली बार संकलित किया गया था।
विभिन्न परंपराएँ: आज भी तीन प्रमुख विनय परंपराएँ प्रचलित हैं:
- थेरवाद: श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रचलित।
- मूलसर्वस्तिवाद: तिब्बती बौद्ध धर्म और हिमालयी क्षेत्र में प्रचलित।
- धर्मगुप्तक: ताइवान और पूर्वी एशियाई बौद्ध धर्म में प्रचलित।
इन तीनों के अलावा, पाँच अन्य भारतीय बौद्ध विनय परंपराओं के ग्रंथ एशियाई संग्रहों में सुरक्षित हैं। इनमें काश्यपीय, महासांघिक, महिषासक, सम्मतीय और सर्वस्तिवाद शामिल हैं।
विनय शब्द का अर्थ: विनय शब्द संस्कृत क्रिया से लिया गया है, जिसका अर्थ है नेतृत्व करना, दूर ले जाना, प्रशिक्षित करना, वश में करना, मार्गदर्शन करना, या शिक्षित करना। इसे अक्सर 'अनुशासन' के रूप में अनुवादित किया जाता है। बुद्ध ने अपनी पूरी शिक्षाओं को 'धम्म-विनय' (सिद्धांत और अनुशासन) कहा, जो बौद्ध अभ्यास में इसके अभिन्न महत्व को दर्शाता है।
विस्तार से: विनय ग्रंथों में भिक्षुओं और भिक्षुणियों के दैनिक जीवन, आहार, वस्त्र, आवास, औषधि, समाज से व्यवहार, और ध्यान जैसे विषयों पर विस्तृत नियम और दिशानिर्देश दिए गए हैं। इसका उद्देश्य साधकों को सासारिक मोह-माया से दूर रखते हुए उन्हें ज्ञान प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर करना है।