Arihant_(Jainism)

अरिहंत (जैन धर्म)

Arihant (Jainism)

(Soul status concept of Jainism)

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अरिहंत: आंतरिक विजय का प्रतीक

अरिहंत (जैन प्राकृत: अरिहन्त, संस्कृत: अर्हत्) का अर्थ होता है "विजेता"। जैन धर्म में, अरिहंत एक ऐसी आत्मा (जीवा) होती है जिसने अपने भीतर के क्लेशों - जैसे राग, द्वेष, मोह, लोभ, क्रोध और मान - पर विजय प्राप्त कर ली होती है। चार घाती कर्मों का नाश करके, वे शुद्ध आत्मतत्व को प्राप्त करते हैं।

अरिहंतों को ** केवलिन् ** (सर्वज्ञ प्राणी) भी कहा जाता है क्योंकि उनके पास ** केवल ज्ञान ** (शुद्ध अनंत ज्ञान) होता है। एक अरिहंत को ** जिन ** ("विजेता") भी कहा जाता है।

अपने जीवन के अंत में, अरिहंत शेष कर्मों को नष्ट कर देते हैं और ** मोक्ष ** (मुक्ति) प्राप्त करके ** सिद्ध ** बन जाते हैं। अरिहंतों के पास शरीर होता है जबकि सिद्ध निराकार शुद्ध आत्माएँ होती हैं।

नमोकार मंत्र, जो ** पंच-परमेष्ठी ** (पाँच सर्वोच्च तत्वों) को समर्पित है, ** णमो अरिहंताणं ** ("अरिहंतों को नमस्कार") से शुरू होता है।

केवलिन् - सर्वज्ञ प्राणी - दो प्रकार के होते हैं:

  1. तीर्थंकर केवलिन्: 24 मानव आध्यात्मिक गुरु जिन्होंने सर्वज्ञता प्राप्त करने के बाद मोक्ष का मार्ग सिखाया।
  2. ** सामान्य केवलिन्**: केवलिन् जो अपनी मुक्ति में लीन रहते हैं।

जैन धर्म के अनुसार, हर आत्मा में अरिहंत बनने की क्षमता होती है। एक आत्मा जो सभी कषायों या आंतरिक शत्रुओं - क्रोध, अहंकार, छल, और लालच - को नष्ट कर देती है जो अज्ञानता को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं, वह अरिहंत बन जाती है।

अधिक जानकारी:

  • अरिहंत, जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है जो आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति के मार्ग को दर्शाता है।
  • अरिहंत पूर्ण रूप से कर्मों से मुक्त होते हैं और इसलिए जन्म और मृत्यु के चक्र से परे होते हैं।
  • वे दूसरों के लिए एक आदर्श और प्रेरणा स्रोत हैं, जो दर्शाते हैं कि आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त करना संभव है।

संक्षेप में:

अरिहंत एक पूर्ण आत्मा है जिसने आंतरिक विजय प्राप्त कर ली है और मुक्ति प्राप्त की है। वे दूसरों के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणा स्रोत हैं, जो दर्शाते हैं कि आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त करना संभव है।


Arihant is a jiva (soul) who has conquered inner passions such as attachment, anger, pride and greed. Having destroyed four inimical karmas, they realize pure self. Arihants are also called kevalins as they possess kevala jnana. An arihant is also called a jina ("victor"). At the end of their life, arihants destroy remaining karmas and attain moksha (liberation) and become siddhas. Arihantas have a body while siddhas are bodiless pure spirit. The Ṇamōkāra mantra, the fundamental prayer dedicated to Pañca-Parameṣṭhi, begins with Ṇamō arihantāṇaṁ, "obeisance to the arihants".



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