Buddhaghosa

बुद्धघोष

Buddhaghosa

(5th-century Indian Theravada Buddhist commentator, translator and philosopher)

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बुद्धघोष: थेरवाद बौद्ध धर्म के एक महान विद्वान

पृष्ठभूमि:

बुद्धघोष पांचवीं शताब्दी के एक भारतीय थेरवाद बौद्ध टीकाकार, अनुवादक और दार्शनिक थे। उन्होंने श्रीलंका के अनुराधापुर स्थित महाविहार में काम किया और खुद को विभावजवाद स्कूल और सिंहली महाविहार की परंपरा का हिस्सा माना।

प्रमुख रचनाएँ और उनका महत्व:

  • विशुद्धि मग्ग (शुद्धिकरण का मार्ग): बुद्धघोष की सबसे प्रसिद्ध रचना "विशुद्धि मग्ग" है, जो थेरवाद शिक्षाओं और प्रथाओं पर पुराने सिंहली टीकाओं का एक व्यापक सारांश है। सारा शॉ के अनुसार, थेरवाद में यह व्यवस्थित कार्य "ध्यान के विषय पर प्रमुख पाठ" है।
  • बुद्धघोष द्वारा प्रदान की गई व्याख्याओं ने कम से कम 12 वीं शताब्दी ईस्वी से थेरवाद धर्मग्रंथों की रूढ़िवादी समझ का गठन किया है।
  • अन्य रचनाएँ: विशुद्धि मग्ग के अलावा, बुद्धघोष ने कई अन्य महत्वपूर्ण रचनाएँ लिखीं, जिनमें से कुछ के नाम हैं - समंतापासादिका (दीघ निकाय की टीका), कंकवितरणी (पातिमोक्ख की टीका), और परिवत्तर (विनय पिटक पर टीका)।

महत्व और आलोचना:

  • महत्व: बुद्धघोष को आम तौर पर पश्चिमी विद्वानों और थेरवादियों दोनों द्वारा थेरवाद के सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक और टीकाकार के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • आलोचना: हालांकि, कुछ विद्वानों ने उनकी आलोचना भी की है, खासकर उनके द्वारा कैनन के ग्रंथों से कुछ प्रस्थानों के लिए।

निष्कर्ष:

कुल मिलाकर, बुद्धघोष थेरवाद बौद्ध धर्म के एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उनके कार्यों ने थेरवाद शिक्षाओं और प्रथाओं की हमारी समझ को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

हिंदी में विस्तार से:

  • बुद्धघोष ने अपनी रचनाओं के माध्यम से थेरवाद बौद्ध धर्म के जटिल सिद्धांतों को सरल और सुगम भाषा में प्रस्तुत किया।
  • उन्होंने ध्यान, नैतिकता, और ज्ञान जैसे विषयों पर गहन चिंतन किया और अपनी व्याख्याओं के माध्यम से लोगों को उनके जीवन में इन सिद्धांतों को लागू करने में मदद की।
  • उनका मानना ​​था कि सभी मनुष्यों में बुद्धत्व प्राप्त करने की क्षमता है और उन्होंने लोगों को दुखों से मुक्ति का मार्ग दिखाया।
  • बुद्धघोष की रचनाएँ आज भी थेरवाद बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

Buddhaghosa was a 5th-century Indian Theravada Buddhist commentator, translator and philosopher. He worked in the Great Monastery (Mahāvihāra) at Anurādhapura, Sri Lanka and saw himself as being part of the Vibhajjavāda school and in the lineage of the Sinhalese Mahāvihāra.



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