Pudgala

पुद्गल

Pudgala

(One of the six Dravyas in Jainism)

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जैन धर्म में पुद्गल: एक विस्तृत विवरण (Pudgala in Jainism: A Detailed Explanation)

पुद्गल जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह उन छह द्रव्यों (तत्वों) में से एक है जो हमारे आस-पास की दुनिया का निर्माण करते हैं। ये छह द्रव्य हैं: जीव और अजीव।

जीव: चेतना युक्त आत्मा

अजीव: पाँच प्रकार के निर्जीव तत्व:

  1. धर्म: गति का माध्यम
  2. अधर्म: स्थिरता का माध्यम
  3. आकाश: स्थान (Space)
  4. पुद्गल: पदार्थ (Matter)
  5. काल: समय (Time)

काल को छोड़कर, अन्य सभी द्रव्य 'अस्तिकाय' कहलाते हैं क्योंकि वे स्थान घेरते हैं।

पुद्गल शब्द की उत्पत्ति:

"पुद्" का अर्थ है "जोड़ना" या "मिलाना" और "गल" का अर्थ है "अलग होना" या "विभाजित होना"। इस प्रकार, पुद्गल उन सभी चीजों को संदर्भित करता है जो निरंतर परिवर्तन की स्थिति में हैं, जो पदार्थ (matter) का मूल गुण है।

परमाणु और स्कंध:

पुद्गल की सबसे छोटी इकाई परमाणु है। यह वह मूलभूत कण है जिससे सभी पदार्थ बने हैं। परमाणुओं के संयोग से स्कंध का निर्माण होता है। स्कंध को सरल शब्दों में पदार्थों का समूह कहा जा सकता है।

पुद्गल के चार गुण:

प्रत्येक पुद्गल में हमेशा चार गुण होते हैं:

  1. वर्ण: रंग (Color)
  2. रस: स्वाद (Taste)
  3. गंध: गंध (Smell)
  4. स्पर्श: स्पर्श (Touch)

बौद्ध धर्म में पुद्गल:

बौद्ध धर्म में, पुद्गल का अर्थ उस अस्थायी अस्तित्व से है जो पुनर्जन्म लेता है। यह उन कर्मों और संस्कारों का एक संग्रह है जो एक व्यक्ति को तब तक पुनर्जन्म के चक्र में फंसाए रखते हैं जब तक कि वह निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त नहीं कर लेता।

संक्षेप में, पुद्गल जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो पदार्थ और उसके परिवर्तनशील स्वभाव को समझाने में मदद करता है।


In Jainism, Pudgala is one of the six Dravyas, or aspects of reality that fabricate the world we live in. The six dravyas include the jiva and the fivefold divisions of ajiva (non-living) category: dharma (motion), adharma (rest), akasha (space), pudgala (matter) and kala (time). Pudgala, like other dravyas except kala is called astikaya in the sense that it occupies space.



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