Yajnavalkya

याज्ञवल्क्य

Yajnavalkya

(Ancient Indian sage and philosopher)

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याज्ञवल्क्य: एक महान वैदिक ऋषि

याज्ञवल्क्य एक पूजनीय वैदिक ऋषि हैं जिनका उल्लेख बृहदारण्यक उपनिषद (लगभग 700 ईसा पूर्व) में मिलता है। यह उपनिषद हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है।

महत्वपूर्ण योगदान:

  • आध्यात्मिक प्रश्न: याज्ञवल्क्य ने अस्तित्व, चेतना और नश्वरता जैसे गूढ़ आध्यात्मिक प्रश्नों पर विचार किया और उन पर बहस की।
  • नेति नेति सिद्धांत: उन्होंने "नेति नेति" ("यह नहीं, यह नहीं") के ज्ञानमीमांसीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसका उद्देश्य सार्वभौमिक आत्मा और ब्रह्म की खोज करना है।
  • ग्रंथ रचना: याज्ञवल्क्य को कई ग्रंथों का रचयिता माना जाता है, जिनमें शामिल हैं:
    • याज्ञवल्क्य स्मृति: यह ग्रंथ हिन्दू धर्म में सामाजिक, नैतिक और पारिवारिक नियमों का महत्वपूर्ण स्रोत है।
    • योग याज्ञवल्क्य: यह ग्रंथ योग के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है।
  • वेदांत दर्शन: वेदांत दर्शन के कुछ ग्रंथों में भी याज्ञवल्क्य का उल्लेख मिलता है।
  • अन्य ग्रंथ: ब्राह्मण और आरण्यक जैसे अन्य वैदिक ग्रंथों में भी याज्ञवल्क्य का उल्लेख मिलता है, जो उनके ज्ञान और प्रभाव को दर्शाता है।

संक्षेप में:

याज्ञवल्क्य एक महान वैदिक ऋषि थे जिन्होंने अपने ज्ञान, चिंतन और लेखन से हिंदू धर्म को समृद्ध बनाया। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान की ओर प्रेरित करते हैं।


Yajnavalkya or Yagyavalkya is a Hindu Vedic sage featuring in the Brihadaranyaka Upanishad. Yajnavalkya proposes and debates metaphysical questions about the nature of existence, consciousness and impermanence, and expounds the epistemic doctrine of neti neti to discover the universal Self and Ātman. Texts attributed to him include the Yajnavalkya Smriti, Yoga Yajnavalkya and some texts of the Vedanta school. He is also mentioned in various Brahmanas and Aranyakas.



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