Impermanence

अनस्थिरता

Impermanence

(Philosophical concept)

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अनित्यता: बदलाव का दर्शन

"अनित्यता" एक ऐसा दार्शनिक सिद्धांत है जो धर्म और दर्शन की कई शाखाओं में मौजूद है। यह इस बात पर केंद्रित है कि दुनिया में सब कुछ परिवर्तनशील है, कुछ भी स्थिर नहीं है।

पूर्वी दर्शन में:

  • बौद्ध दर्शन: बौद्ध धर्म में, अनित्यता को "त्रिलक्षण" या "तीन सार्वभौमिक सत्य" में से एक माना जाता है। अन्य दो सत्य हैं "दुःख" (कष्ट) और "अनात्म" (अहंकार की अनुपस्थिति)। बौद्ध धर्म के अनुसार, जीवन में सब कुछ क्षाणिक है, कुछ भी स्थायी नहीं है। यह समझ विकसित करने से दुखों से मुक्ति मिलती है।
  • हिंदू दर्शन: हिंदू धर्म में भी अनित्यता एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म में भी मोक्ष की प्राप्ति के लिए अनित्यता को समझना आवश्यक माना जाता है।

पश्चिमी दर्शन में:

  • हेराक्लिटस: पश्चिमी दर्शन में अनित्यता का विचार सबसे पहले ग्रीक दार्शनिक हेराक्लिटस ने प्रस्तुत किया था। उनका मानना था कि "सब कुछ बह रहा है" (panta rhei)। उन्होंने नदी के उदाहरण से समझाया कि हम एक ही नदी में दो बार कदम नहीं रख सकते क्योंकि पानी निरंतर बह रहा होता है और बदल रहा होता है।
  • बनना: पश्चिमी दर्शन में, अनित्यता को "बनना" (becoming) के रूप में भी जाना जाता है। यह विचार दर्शाता है कि वास्तविकता स्थिर नहीं है बल्कि निरंतर परिवर्तन की स्थिति में है।

अनित्यता का महत्त्व:

अनित्यता का सिद्धांत हमें यह समझने में मदद करता है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। यह समझ हमें सांसारिक मोह-माया से मुक्त होने और वास्तविक सुख की खोज करने में मदद कर सकती है।


Impermanence, also known as the philosophical problem of change, is a philosophical concept addressed in a variety of religions and philosophies. In Eastern philosophy it is notable for its role in the Buddhist three marks of existence. It is also an element of Hinduism. In Western philosophy it is most famously known through its first appearance in Greek philosophy in the writings of Heraclitus and in his doctrine of panta rhei. In Western philosophy the concept is also referred to as becoming.



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