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वीरचंद गांधी

Virchand Gandhi

(Jain scholar who represented Jainism at the first World Parliament of Religions in 1893)

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वीरचंद राघवजी गांधी: जैन धर्म के प्रबल समर्थक

वीरचंद राघवजी गांधी (२५ अगस्त १८६४ - ७ अगस्त १९०१) एक विद्वान जैन विद्वान थे जिन्होंने १८९३ में शिकागो में आयोजित प्रथम विश्व धर्म संसद में जैन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। पेशे से एक बैरिस्टर होने के नाते, उन्होंने जैनियों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम किया और जैन धर्म, अन्य धर्मों और दर्शन पर बड़े पैमाने पर लिखा और व्याख्यान दिया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

वीरचंद गांधी का जन्म २५ अगस्त १८६४ को गुजरात के भावनगर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भावनगर में ही प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए मुंबई चले गए। मुंबई विश्वविद्यालय से उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह एक बैरिस्टर बन गए और मुंबई उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की।

जैन धर्म के प्रति समर्पण:

वीरचंद गांधी बचपन से ही जैन धर्म के प्रति समर्पित थे। उन्होंने जैन ग्रंथों का गहन अध्ययन किया और जैन धर्म के सिद्धांतों और दर्शन को अच्छी तरह समझा। उन्होंने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

विश्व धर्म संसद में जैन धर्म का प्रतिनिधित्व:

१८९३ में, वीरचंद गांधी को शिकागो में आयोजित प्रथम विश्व धर्म संसद में जैन धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया। यह आयोजन विभिन्न धर्मों के बीच संवाद और समझ को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किया गया था। वीरचंद गांधी ने जैन धर्म के सिद्धांतों, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और अस्तेय जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर प्रकाश डाला। उनके भाषण ने दुनिया भर के लोगों को जैन धर्म के प्रति आकर्षित किया।

लेखन और व्याख्यान:

वीरचंद गांधी ने जैन धर्म, दर्शन और अन्य धर्मों पर कई पुस्तकें और लेख लिखे। उन्होंने अपनी पुस्तकों और व्याख्यानों के माध्यम से जैन धर्म की शिक्षाओं को सरल भाषा में समझाया।

मृत्यु और विरासत:

वीरचंद गांधी का निधन ७ अगस्त १९०१ को मुंबई में हुआ। वह जैन धर्म के एक महान विद्वान और समर्थक थे। उन्होंने अपने ज्ञान, वाक्पटुता और समर्पण से जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया और दुनिया को अहिंसा और शांति का संदेश दिया।


Virachand Raghavji Gandhi was a Jain scholar who represented Jainism at the first World Parliament of Religions in 1893. A barrister by profession, he worked to defend the rights of Jains, and wrote and lectured extensively on Jainism, other religions, and philosophy.



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